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भारत-भैषज्य-रत्नाकरः
[ मकारादि
स्वास्थ्यकी वृद्धि होती है। यह शरीरको दृढ़ करता,
मृद्धीकासवः तथा बल, धातु, अग्नि, स्मृति और वीर्यको बढ़ाता (शा. ध. । खं. २ अ. १०.) एवं वायुको नष्ट करता है। अत्यन्त वाजी- प्रयोग संख्या ३१३० द्राक्षासव (३) करण है।
| देखिये। इति मकाराद्यासवारिष्टप्रकरणम् ।
अथ मकारादिलेपप्रकरणम् (५३४२) मञ्जिष्ठादिलेपः (१) । (५३४४) मदनफलादिलेपः (३. मा. । श्लीपद.; व. से.; यो. र. । श्लीपद.)
(बृ. मा.; व. से. । शूलरोगा. ) मञ्जिष्ठां मधुकं रास्नां सहस्रां सपुनर्नवाम् ।
| नाभिलेपाजयेच्छूलं मदनः काञ्जिकान्वितः ।
जीवन्तीमूलकल्की वा सतैलः पार्थशूलहा ॥ पिष्ट्वाऽऽरनाललेंपोऽयं पित्तश्लीपदशान्तये ॥ |
मैनफलको कानीमें पीसकर (गर्म करके ) ___मजीठ, मुलैठी, रास्ना, जटामांसी और पुनर्न
| नाभिपर लेप करनेसे शूल नष्ट हो जाता है । वाकी जड़ समान भाग लेकर चूर्ण बनावें ।
जीवन्तीकी जड़को पीसकर तेलमें मिलाकर इसे काञ्जीमें पीसकर लेप करनेसे पित्तज लेप करनेसे पसलीका शूल नष्ट होता है । श्लीपद नष्ट होता है ।
(५३४५) मदनादिलेपः (१) (५३४३) मञ्जिष्ठादिलेपः (२) ( वृ. नि. र. । श्लीपद. क्षुद रो.) ___ (रा. मा. । विष.)
| मदनं च तथा सिक्थं सामुद्रलवणं तथा ।
| महिषीनवनीतेन संतप्ते लेपने हितम् ॥ मञ्जिष्ठागजकेसरपत्रकरजनीपलेपिता लूता।।
सप्ताहात्स्फटितौ पादौ जायेते कमलोपमौ ॥ नश्यात गण्डस्तु नृणा कृतगुदात्वमलपानाम् ॥ १२ तोले भैंसके नवनीत (नौनी घो) को
मजीठ, नागकेसर, तेजपात और हल्दी समान गरम करके उसमें १ तोला मोम मिला दें और भाग लेकर चूर्ण बनावें।
जब वह पिघल जाए तो उसमें १-१ तोला मैनइसका लेप करनेसे मकड़ीका विष नष्ट फल और समुद्र लवण का चूर्ण मिलाकर होता है।
सुरक्षित रखें। हिंगोटकी छालका लेप करनेसे 'गलगण्ड' इसे निरन्तर १ सप्ताह तक लगानेसे दाह शान्त नष्ट हो जाता है।
| होती और फटे हुवे पैर कमलके समान हो जाते हैं।
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