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________________ Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir www.kobatirth.org Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra १३२ भारत-भैषज्य-रत्नाकरः [ मकारादि स्वास्थ्यकी वृद्धि होती है। यह शरीरको दृढ़ करता, मृद्धीकासवः तथा बल, धातु, अग्नि, स्मृति और वीर्यको बढ़ाता (शा. ध. । खं. २ अ. १०.) एवं वायुको नष्ट करता है। अत्यन्त वाजी- प्रयोग संख्या ३१३० द्राक्षासव (३) करण है। | देखिये। इति मकाराद्यासवारिष्टप्रकरणम् । अथ मकारादिलेपप्रकरणम् (५३४२) मञ्जिष्ठादिलेपः (१) । (५३४४) मदनफलादिलेपः (३. मा. । श्लीपद.; व. से.; यो. र. । श्लीपद.) (बृ. मा.; व. से. । शूलरोगा. ) मञ्जिष्ठां मधुकं रास्नां सहस्रां सपुनर्नवाम् । | नाभिलेपाजयेच्छूलं मदनः काञ्जिकान्वितः । जीवन्तीमूलकल्की वा सतैलः पार्थशूलहा ॥ पिष्ट्वाऽऽरनाललेंपोऽयं पित्तश्लीपदशान्तये ॥ | मैनफलको कानीमें पीसकर (गर्म करके ) ___मजीठ, मुलैठी, रास्ना, जटामांसी और पुनर्न | नाभिपर लेप करनेसे शूल नष्ट हो जाता है । वाकी जड़ समान भाग लेकर चूर्ण बनावें । जीवन्तीकी जड़को पीसकर तेलमें मिलाकर इसे काञ्जीमें पीसकर लेप करनेसे पित्तज लेप करनेसे पसलीका शूल नष्ट होता है । श्लीपद नष्ट होता है । (५३४५) मदनादिलेपः (१) (५३४३) मञ्जिष्ठादिलेपः (२) ( वृ. नि. र. । श्लीपद. क्षुद रो.) ___ (रा. मा. । विष.) | मदनं च तथा सिक्थं सामुद्रलवणं तथा । | महिषीनवनीतेन संतप्ते लेपने हितम् ॥ मञ्जिष्ठागजकेसरपत्रकरजनीपलेपिता लूता।। सप्ताहात्स्फटितौ पादौ जायेते कमलोपमौ ॥ नश्यात गण्डस्तु नृणा कृतगुदात्वमलपानाम् ॥ १२ तोले भैंसके नवनीत (नौनी घो) को मजीठ, नागकेसर, तेजपात और हल्दी समान गरम करके उसमें १ तोला मोम मिला दें और भाग लेकर चूर्ण बनावें। जब वह पिघल जाए तो उसमें १-१ तोला मैनइसका लेप करनेसे मकड़ीका विष नष्ट फल और समुद्र लवण का चूर्ण मिलाकर होता है। सुरक्षित रखें। हिंगोटकी छालका लेप करनेसे 'गलगण्ड' इसे निरन्तर १ सप्ताह तक लगानेसे दाह शान्त नष्ट हो जाता है। | होती और फटे हुवे पैर कमलके समान हो जाते हैं। For Private And Personal Use Only
SR No.020117
Book TitleBharat Bhaishajya Ratnakar Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNagindas Chaganlal Shah, Gopinath Gupt, Nivaranchandra Bhattacharya
PublisherUnza Aayurvedik Pharmacy
Publication Year1985
Total Pages908
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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