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लेपप्रकरणम्
चतुर्थो भागः
(५३४६) मदनादिलेपः (२) कर लेप करनेसे केश शीघही घने, दृढ़, लम्बे और
( शा. सं. । उ. खं. अ. ११) | सीधे हो जाते हैं । मदनस्य फलं तिक्तां पिष्ट्वा काञ्जिकवारिणा (५३४९) मधुकादिलेपः (२) कोष्णं कुर्यात्राभिलेपं शूलशान्तिभवेत्ततः ॥
(ग. नि. । चरा.) मैनफल और कुटकीका समान भाग चूर्ण मधुकं रजनी मुस्तं दाडिमं साम्लवेतसम् । एकत्र मिला कर, उसे कांजीमें पीसकर, जरा गर्म अञ्जनं तिन्तिडीकं च नलदं पत्रमुत्पलम् ॥ करके नाभि पर लेप करनेसे शूल शान्त त्वचं व्याघ्रनखं चैव मातुलुङ्गरसं मधु । हो जाता है।
दिह्यादेभिवरातस्य मस्तुशुक्तयुतैः शिरः ॥ (५३४७) मदनादिलेपः (३)
शिरोभितापसम्मोहवमिहिक्कापवेपनुत् । (वै. जी । वि. ४)
प्रदेहो नाशयत्येष ज्वरितानामुपद्रवान् ।।
मुलैठी, हल्दी, नागरमोथा, अनार, अम्लबेत, मदनसैन्धव गुग्गुलगैरिकाज्यमधुवालकपङ्कविलेपनात् ।
सुरमा, तिन्तडीक, खस, तेजपात, नीलोत्पल, दार. स्फुटितमप्यखिलं चरणद्वयं
चीनी और नखी नामक गन्ध द्रव्यके समान भाग विकचतामरसपतिभं भवेत् ॥
मिश्रित चूर्णको शहद और बिजौरे नीबूके रसमें
अथवो मस्तुशुक्तमें मिलाकर मस्तकपर लेप करनेसे मोम, सेंधानमक, गूगल, गेरु, और सुगन्ध
शिरकी तपन, सम्मोह, वमन, हिक्का और कम्पन आदि बाला ( या खस ) के चूर्ण को घी और शहदमें
ज्वरके उपद्रव शान्त हो जाते हैं। मिलाकर पैरों पर लेप करनेसे पैरोंकी बिवाई नष्ट | होकर पैर कोमल हो जाते हैं।
(५३५०) मधुकादिलेपः (३) ___(पहिले घोको गरम करके उसमें गूगल
( यो. र.; वृ. नि. र.; व. से. । मसूरिका.) मिलावें, फिर मोम मिला दें तथा अन्तमें अन्य
मधुकं त्रिफला मूर्वा दाऊत्वङ् नीलमुत्पलम् । ओषधियोंका चूर्ण और शहद मिलाकर खब घोटे उशीरलोध्रमभिष्ठाः प्रलेपाश्च्योतने हिताः॥
| नशयन्त्यनेन दृग्जाता मसूर्यो न भवन्ति च ॥ (५३४८) मधुकादिलेपः (१)
मुलैठी, हर्र, बहेड़ा, आमला, मूर्वा दारुहल्दीकी (वृ. मा.; व. से. । क्षुद्ररो.)
छाल, नीलोत्पल, खस, लोध और मजीठके समान मधुकेन्दीवरं मूर्वा तिलाज्यगोक्षीरभृङ्गलेपेन । भाग-मिश्रित चूर्णका (पानीमें पीसकर) लेप करने अचिराद्भवन्ति केशा घनदृढमूलायता ऋजवः ॥ और इन्हीं ओषधियोंके जलको आंखमें डालनेसे
मुलैठी, स्थलपन, मूर्वा, तिल और भंगरेके आंखोपर निकली हुई मसूरिका नष्ट हो जाती है समान-भाग-मिश्रित चूर्णको घी और दूधमें मिला- और नवीन नहीं निकलती ।
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