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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १२० भारत-भैषज्य-रत्नाकरः [मकारादि सर्वानेतान् जयेच्छीघ्रं वृक्षमिन्द्राशनिर्यथा । । तदनन्तर २ सेर तिलके तेलमें यह क्वाथ और माषतैलमिदं नाम्ना सर्ववातविकारनुत ॥ २० तोले सेंधानमकका चूर्ण मिलाकर मन्दाग्नि २ सेर उड़दों को कट कर ३२ पर पकायें। जब पानी जल जाए तो तेलको सेर पानीमें पकावें । जब ८ सेर पानी | छान लें । शेष रह जाय तो छान लें । तदनन्तर २ सेर - यदि वा पुसे कोई अङ्ग संकुचित हो गया हो तिलके तेल में यह काथ, ८ सेर मस्तु (दहीमें तो इस तेलकी मालिश करनी चाहिये और बाहु उसके बराबर पानी मिला कर बनाया हुआ तक) | तथा शीर्षगत वात-व्याधिमें इसकी नस्य लेनी ८ सेर कांजी और निम्नलिखित कल्क मिला- और पान कराना चाहिये। कर मन्दाग्नि पर पकावें । जब पानी जल जाय तो (५३१६) मांसीतैलम् तेलको छान लें। (ब. से. । क्षुद्ररोगा.) ___ कल्क-सेंधानमक, मैनफल, रास्ना, सोया, सोंठ, मांसीस्वरससंसिद्ध कटुतैलं चतुष्पलम् । काली मिर्च, पीपल, बच, तगर, अरण्डमूल, मजीठ, मनःशिला तथा मांसी राजीवजश्च गन्धकम् ॥ कमलकेसर, खरैटी, गोखरु, पाठा, सरलकाष्ठ शाणमात्रैस्तदभ्यगाद्धन्त्यवश्यमरूंपिकाम् । (चीड़का बुरादा), देवदारु, अजमोद, असगन्ध, पामां विचर्चिकाचैव तथान्याञ्छिरसोत्रणान् ॥ पोखरमूल और पुनर्नवा १०-११ तोला लेकर सबको जटामांसीका स्वरस (या क्याथ) २ सेर, एकत्र ट लें। सरसोंका तैल आधा सेर और मनसिल, जटामांसी, इसे नस्य, पान, अभ्यंग और बस्तिकर्म कमलगट्टा तथा गन्धकका चूर्ण ५-५ माशे लेकर द्वारा प्रयुक्त करना चाहिये। सबको एकत्र मिलाकर मन्दाग्नि पर पकावें । जब यह तेल अर्दित (लकवा), कर्णशूल, मन्या- पानी जल जाय तो तेलको छान लें । यह तैल स्तम्भ, हनुग्रह, बधिरता, पक्षाघात, गृध्रसी, खञ्जता अरुषिका ( सिरकी छोटी छोटी फुसियों ) को नष्ट और पङ्गुता इत्यादि समस्त विकारों को नष्ट | करता है। करता है। (५३१७) मिश्याचं तैलम् (५३१५) माषतैलम् (स्वल्प) (४) ( ग. नि. । अजी.) (च. द. । वातव्या.) मिर्शि मधूच्छिष्टमरुष्करं च तैलं सङ्कुचितेऽभ्यङ्गो माषन्धवसाधितम् । ससैन्धवं क्षारमथाम्लक्षम् । बाहुशीर्षगते नस्यं पानं चौत्तरभक्तिकम् ॥ तैलं विपकं मधुशुक्तयुक्तं काथोऽत्र मापनिष्पाद्यः सैन्धवं कल्कमेव च ॥ खल्ली प्रवृद्धां शमयेद्धिसद्यः ॥ ४ सेर उड़दोंको कूटकर ३२ सेर पानीमें ३ सेर तिलके तेलमें १२ सेर मधुशुक्त तथा पकावें । जब ८ सेर पानी शेष रहे तो छान लें। ५-५ तोले सौंफ, मोम, भिलावा, सेंधानमक, For Private And Personal Use Only
SR No.020117
Book TitleBharat Bhaishajya Ratnakar Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNagindas Chaganlal Shah, Gopinath Gupt, Nivaranchandra Bhattacharya
PublisherUnza Aayurvedik Pharmacy
Publication Year1985
Total Pages908
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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