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भारत-भैषज्य-रत्नाकरः
[ मकारादि
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पुष्टि, कान्ति, मेधा, धृति और बुद्धि का विकास | (५३१०) मार्कवतैलम् करते हैं।
(वृ. मा. । क्षुद्ररोगा.) (५३०९) मागध्याय तैलम् क्षीरात्समार्कवरसाद् द्वे प्रस्थे मधुकोत्पले । ( ग. नि. । तैला. २: सु. स. । चि. अ. ८) । तैलस्य कुडवं पकं तन्नस्यं पलितापहम् ॥ मागधी मधुकं रोधं कुष्ठमेला हरेणवः ।
___ आधा सेर तिलके तेलमें २ सेर गोदुग्ध और समझा धातकी चैव सारिवा रजनीद्रयम् ॥
| २ सेर भंगरेका रस तथा १० तोले मुलैठीका कल्क मियङ्गवः सर्जरसः पद्मकं पद्मकेशरम् ।
मिलाकर मन्दाग्नि पर पकावें । जब पानी जल मातुलुङ्गस्य पत्राणि मधूच्छिष्टं ससैन्धवम् ॥
जाय तो तेलको छान लें। एतत्सम्भृत्य सम्भार तैलं धीरो विपाचयेत् ।
इसकी नस्य लेनेसे पलित रोग नष्ट होता है। एतद्धि गण्डमालासु मण्डलेष्वथ मेहिषु ॥ (५३११) मालत्यादितैलम् रोपणार्य हितं तैलं भगन्दरविनाशनम् ॥ (वृ. मा. र. र.; भै. र.; च. द.; धन्व. ।
कल्क-पीपल, मुलैठी, लोध, कूठ, छोटी क्षुदरोगा.; वा. भ. । उ. अ. २४) इलायची, रेणुका, मजीठ, धायके फूल, सारिवा, मालतीकरवीराग्निनक्तमालै विपाचितम् । हल्दी, दारुहल्दी, फूलप्रियङ्गु, राल, पनाक, कमल. तैलमभ्यञ्जने शस्तमिन्दलुप्तापहं परम् ।। केसर, बिजौ रेके पत्ते, मोम और सेंधा नमक सब इदं हि त्वरितं हन्ति दारुणं नियतं नृणाम् ।। समान भाग मिश्रित ४० तोले (प्रत्येक २। तोले) चमेली, कनेर, भिलावा और करंजफल के ले कर सबको एकत्र कूट लें।
कल्क तथा क्वाथसे सिद्ध तैलकी मालिश से इन्द्र४ सेर तिलके तेलमें यह कल्क और १६ । लुप्त (गंज) और दारुण नामक रोग अवश्य और सेर पानी मिला कर मन्दाग्नि पर पकावें। जब पानी शीघ्र नष्ट हो जाता है । जल जाय तो तेलको छान लें। यह तेल क्वाथार्थ-प्रत्येक वस्तु १ सेर, पाकार्थ जल गण्डमाला, प्रमेह-पिडिका और भगन्दरको नष्ट ३२ सेर । शेष क्वाथ ८ सेर । करता है।
कल्कार्थ-प्रत्येक वस्तु ५ तोले । तेल जिसका आकार घोड़ेके खुर अथवा होथीके कानके समान हो।
(५३१२) माषतैलम् (१) इन तथा अन्य ओषधियोंकी उत्तमता उनकी
(च. द. । वातव्या.) नवीनता पर विशेष निर्भर होती है।
माषात्मगुप्तातिविषोरुबूक१ सुधावचालाङ्गालकोमिति पाठान्तरम् ।
रास्नाशताहालवणैः मुपिष्टैः।
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