________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
तैलप्रकरणम् ]
चतुर्थों भागः
ये दोनों (महा सुगन्धि तथा लक्ष्मी विलास) तैल वात विकारों को अत्यन्त शीघ्र नष्ट करके
इसके पश्चात् उसे अच्छी तरह निचोड़ें कि जिससे झलक लिए हो और तोड़ने से जिसके कण न झड़ें वह स्नेहरहित हो जाए। अब इसे बकरीके मूत्र वह भी उत्तम होता है । और सहिजने को छालके काथकी अनेक ( ३ या | उत्तम कूठ आदिकी पहचान--जो कुष्ठ ७) भावनाएं दें । तदनन्तर उसे सहिजनेकी । (कूठ) हरिन के सींग के समान (कठोर और भारी) जड़के कल्ककी (लुगदी) के बीचमें रखकर उसके हो वह उत्तम होता है। जिस चन्दनका रंग ऊपर केवड़े के फूलों की पत्तियां लपेट कर पुट- रक्ताभा ( ललाई ) लिये हुए पीला हो वह उत्तम पाक विधि से पका अर्थात् कुशसे लपेट कर | होता है। कौवेको चोंचके समान एवं स्निग्ध उसके ऊपर आध अंगुल मोटा मिट्टीका लेप करदें; और भारो अगर उत्तम माना जाता है । ( उत्तम और सुखाकर कण्डोंकी निर्धूम अग्निमें दबा दें। अगर लोहेके समान पानी में डूब जाता है।) जब ऊपरकी मिट्टी लाल हो जाए तो ठण्डा करके उत्तम केसर आदि के लक्षण. उसमें से खट्टाशीको निकाल लें । इसप्रकार शुद्ध की जिस केसरके फूलमें केसर थोड़ी और स्निग्ध हुई खट्टाशीमें कस्तूरीके समान गन्ध आने लगती है। हो वह उत्तम मानी जाती है। खट्टाशीका गोल
शिलारस आदिका शोधन--तुरुष्क और मांसल होना श्रेष्ठताका लक्षण है। मुरामांसी (शिलारस) को शहदकी भावना देनेसे; केसरको पीले रंगकी और जटामांसी (बालछड़) पिंगल वर्ण घृतकी; अगरको केसरके पानीकी; गठीवनको वाली एवं जटाके समान उत्तम मानी जाती है। गोमूत्रकी; और सौंफको मधुमिश्रित जलकी भावना उत्तम रेणुकादिके लक्षण । देनेसे ये शुद्र हो जाते हैं।
जिसके दाने मूंगके बराबर हों वह उत्तम ___कस्तूरीकी परीक्षा-जिस कस्तूरीमें सुग- | होती है। ( मरिचके समान बड़े दानों वाली और न्धके पश्चात् ज़रा एक क्षार जैसी गन्ध आती हो, । गन्ध रहित रेणुका निकृष्ट होती है)। आनूप जलानेसे जो बिल्कुल राख न हो जाय, रंगमें (जलके समीपवर्ती) प्रदेशों में उत्पन्न नागरमोथा पीली हो ओर जिसकी गंध केवड़े के फूलकी गन्ध | उत्तम होता है। के समान हो, जो वजनमें हल्की और स्निग्ध हो जो जायफल शब्दयुक्त स्निग्ध और भारी हो वह उत्तम होती है।
उसे श्रेष्ठ समझना चाहिए । कपूर-पक्व कपूरकी अपेक्षा अपक्व श्रेष्ठ श्रेष्ठ इलायची आदिके लक्षण । होता है और उसमें भी जिसके दल बड़े बड़े और छोटे फल वाली इलायची, और श्याम तथा बिल्लौरके समान स्वच्छ हों वह अत्युत्तम होता है। किंचित पाण्डु वर्ण वाली प्रियंगु उत्तम होती है।
जो पक्व कपूर दलदार, स्निग्ध, हरे रंगकी नखी नामक गन्ध द्रव्य वह अच्छा होता है
For Private And Personal Use Only