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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir भारत-भैषज्य-रत्नाकरः [मकारादि इस तेलमें प्रथम-पाक 'पंचपल्लव क्वाथके' पाक 'गंन्धोदक' या धुपिताम्बु के साथ करना साथ और दूसरा "गन्धोदक" के साथ तथा तीसरा चाहिए ।) रेणुकादीनां लक्षणम् सन्धिको कपड़मिट्टीसे बंद कर दें एवं हाप्डीको चूल्हे रणुका मुद्गसंस्थाना शस्तमानू जं धनम् ॥ पर चढ़कर नीचे अग्नि जलावें। (इसके पश्चात् जातीफलं सशब्दञ्च स्निग्धं गुरु च शत्यते । बचको निकाल कर धूपमें सुखा कर रक्खें ) । एलादीनां प्राशरून्यम् हल्दीका शोधन भी इसी प्रकार किया जाता है। एला सूक्ष्मफला श्रेष्ठा प्रियङ्गुः श्यामपाण्डुराः ॥ नागरमोथेका शोधनः नखमश्वखुरं हस्तिकर्णश्चैव प्रशस्यते । नागरमोथे को अधकुटा करके कांजीमें डाल एतेषामपरेषाञ्च नवता प्रबलो गुणः ॥ दें और ३ दिन पश्चात् निकाल कर 'पंचपल्लव ' गन्ध द्रव्य 'पंचपल्लव' क्या यसे धोनेसे साधा- | काथमें स्वेदित करके धूपमें सुखा लें । तत्पश्चात् रणतः शुद्ध हो जाते हैं। विशेष शुद्धि नीचे दी उसे गुडाम्बु (गुड़के शर्बत ) में डाल दें और जाती है। थोड़ी देर पश्चात् निकाल कर मन्दाग्नि पर भूनकर नखी शुद्धि. चूर्ण कर लें। तदनन्तर उसे बकरीके मूत्र और सहनखीको भैंस के गोबरके रस या तिन्तिडीक । जनेकी छालके काथकी पृथक् पृथक एक एक (इमली) के पत्तों के रसमें (दोलायन्त्र विधि से) भावना दे कर सुखाल । स्वेदित करें। यदि ये दोनों चीजें न मिल सक शैलज शुद्धि. तो पानीमें काली मिट्टी धोलकर उसी पानी में शैलजको कांजीमें पका कर (जलसे धो कर) (वेदित कर लेना चाहिए । त पश्चात् उसे स्वच्छ मन्दाग्नि पर भून लें तत्पश्चात् उसे थोड़ी देर तक पानीसे धोकर भिडीके पात्रमें मन्दाग्निपर भूनें और गुडमिश्रित हर्रके काथ में भिगो कर सुखा लें फिर थोड़े समय तक गुडमिश्रित हर्रके क्वाथमें और फिर उसे सुगन्धित फूलोंके बीचमें रख कर भिगोदें। ( एवं धूपमें सुखाले ). अधिवासित (सुगन्धित) बना लें। बचका शोधन. खट्टाशी ( जुन्द बेदस्तर ) का शोधन. बचको क्रमशः गोमूत्र, गोरखमुंडीके काथ और खट्टाशी के नाफे ( नाभि गोलक ) के ऊपर 'पंचपल्लव ' काथमें पृथक पृथक् पकायें और फिर अपामार्ग (चिरचिटे) के क्षार और स्नुही (थोहर) उसे गन्धोदकसे वाप्पस्वेद दें अर्थात् एक हांडीमें के क्षार इत्यादि क्षारोंका लेप करके उसे जलवाप्प गन्धोदक भर कर उसपर एक कपड़ा बांध दें और द्वारा ( वचा शोधन विधिमें कथित रीति से ) स्वे. इसके ऊपर उपरोक्त बचको रख कर उस पर एक दित करें । तदनन्तर उसके बालोंको साफ करदें अन्य हाण्डी उलटी करके ढक दें और दोनोंकी और दोलायन्त्र विधि से पंचपल्लव काथमें पकायें। For Private And Personal Use Only
SR No.020117
Book TitleBharat Bhaishajya Ratnakar Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNagindas Chaganlal Shah, Gopinath Gupt, Nivaranchandra Bhattacharya
PublisherUnza Aayurvedik Pharmacy
Publication Year1985
Total Pages908
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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