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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir [८४] भारत-भैषज्य रत्नाकरः। [दकारादि करके उसमें १ तुला (६। सेर) गुड़ मिलाकर घृत कनकदुपलं चूर्ण क्षिपेन्निर्मलता भवेत् । से चिकने किए हुवे मिट्टीके पात्रमें भरकर उसका पक्षाचे पिवेधस्तु मात्रया च यथाबलम् ॥ मुख बन्द करदें और उसे जौके ढेरमें दबा दें। धातुक्षयं जयत्येव कासं पञ्चविधं तथा। फिर एक मास पश्चात् निकालकर छानलें। अर्शीसि षट्प्रकाराणि तथाष्टावुदराणि च ॥ ____ इसे प्रातःकाल यथोचित मात्रानुसार सेवन प्रमेहश्च महाव्याधिमरुचिं पाण्डुरुक् तथा । करनेसे अर्श, ग्रहणी, पाण्डु, उदावर्त और अरुचि सर्व वातांस्तथा शूलं श्वास छदिममृग्दरम् ॥ नहीं रहती तथा अग्नि दीप्त हो जाती है। अष्टादशैव कुष्ठानि शोफ शूलं भगन्दरम् । (मात्रा-२ तोला ।) शर्कराध मूत्रकृच्छ्मश्मरीञ्च विनाशयेत् ॥ कृशस्य पुष्टिं कुरुते पुष्टस्य च महाबलम् । (३१२२) दशमूलासवः (१) महावेगो महातेजो महावीर्यो विलोक्यते ॥ ( वृ. नि. र. । क्षय; यो. चि. । अ. ७) कामपुष्टिकरो होष बन्ध्यानां पुत्रदो भवेत् ॥ दशमूलं तुलादै च पौष्करश्च तदर्धकम् । __ दशमूल ५० पल ( हर एक चीज ५ पल), हरीतकीनां प्रस्थाई धात्री प्रस्थद्वयं तथा ॥ पोखरमूल २५ पल, हर्र ८ पल, आमला ३२ चित्रकं पुष्करमितं चित्रकाध दुरालभा ।। पल, चीता २५ पल, धमासा १२॥ पल, गिलोय गुडूच्या वै शतपलं विशाला पलपश्चकम् ॥ १०० पल, इन्द्रायन ५ पल, खैरसार ८ पल, खदिरस्य पलान्यष्टौ तदर्धे बीजकं तथा। बिजयसार ४ पल, मजीठ, मुलैठी, कूठ, कैथ, देवमञ्जिष्ठा मधुकं कुष्ठं कपित्थं देवदारु च ॥ दारु, बायबिडंग, चव, लोध, भार्गी, मेदा, महाविड चविकं लोधं भाी चाष्टकवर्गकम् । मेदा, ऋद्धि, वृद्धि, जीवक, ऋषभक, काकोली कृष्णाजाजी पिप्पली च क्रमुकं पद्मक सठी ॥ क्षीरकाकोली, कालाजीरा, पीपल, सुपारी, पभाक, प्रियङ्ग सारिवा मांसी रेणुका नागकेशरम् ।। सटी ( कचूर ), फूल प्रियंगु, सारिवा, जटामांसी, त्रिवृता रजनी रास्ना मेषशृङ्गी पुनर्नवा ॥ रेणुका, नागकेसर, निसोत, हल्दी, रास्ना, मेदासिंगी, शतावरी चेन्द्रयवा मुस्ता द्विपलिकाञ्जले। | पुनर्नवा ( साठी ), शतावर, इन्द्रजौ और नागरचतुर्गुणे पादशेषे द्राक्षा पष्टिपलं क्षिपेत् ॥ मोथा । हरेक चीज़ २-२ पल (१०-१० तोले) त्रिंशत्पलानि धातक्या गुड पलचतुः शतम् । लेकर सबको अधकुंटा करके चार गुने पानीमें मधु द्वात्रिंशत्पलं चैव सर्वमेकत्र कारयेत् ॥ पकावे; जब चौथा भाग पानी शेष रह जाय तो भाण्डे पुराणे स्निग्धे च मांसीमरिचधुपिते ।। उसे छानकर घृतसे चिकने किये हुवे पुराने और पृथक् द्विपलिकानेतान् पिप्पली चन्दनं जलम् । स्याहमिर्च तथा जटामांसीसे धूपित मिट्टीके मटके जातीफलं लवणं च त्वगेलापत्रकेशरान् । में भरदें; साथ ही उसमें ६० पल मुनक्का, ३२ पल कर्षमात्रां च कस्तूरी दत्त्वा पक्षं निधापयेत् ॥ शहद,३० पल धायके फूलोंका चूर्ण, ४०० पल गुड़ For Private And Personal Use Only
SR No.020116
Book TitleBharat Bhaishajya Ratnakar Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNagindas Chaganlal Shah, Gopinath Gupt, Nivaranchandra Bhattacharya
PublisherUnza Aayurvedik Pharmacy
Publication Year1928
Total Pages773
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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