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आसवारिष्टमकरणम् ] तृतीयो भागः।
[८३] शर्करामश्मरीं चैव मूत्रकृच्छू क्षयं जयेत् । । कस्तूरी मिलाकर बरतनका मुख अच्छी तरह बन्द कृशानां पुष्टिजननो वन्ध्यानां पुत्रदः परः॥ । करके भूमिमें गाढ़ दें। अरिष्टो दशमूलाख्यस्तेजः शुक्रबलपदः ॥ एक मास पश्चात् बरतनको निकालकर अरि____ दशमूलकी हरेक वस्तु ५-५ पल, चीता ष्टको छानलें और उसमें निर्मलीके फलेका पूर्ण तथा पोखरमूल २५-२५ पल, लोध और गिलोय मिलाकर रख दें एवं ४-५ दिन बाद जब अरिष्ट २०-२० पल, आमला १६ पल, धमासा १२ स्वच्छ हो जाय तो पुनः छानकर बोतलोंमें भरकर पल, खैरसार, बिजयसार, और हरे ८-८ पल, | मजबूत डाट लगा दें। कूठ, मजीठ, देवदार, बायबिडंग, मुलैठी, भारंगी, यह अरिष्ट ग्रहणी, अरुचि, शूल, श्वास, कैथका गूदा, बहेड़ा, पुनर्नवा ( साठी), चव्य, खांसी, भगन्दर, वातव्याधि, क्षय, छर्दी, पाण्ड, जटामांसी, फूल प्रियंगु, सारिवा, कालाजीरा, कामला, कुष्ठ, बवासीर, प्रमेह, मन्दाग्नि, उदररोग, निसोत, रेणुका, रास्ना, पीपल, सुपारी, सटी अश्मरी, शर्करा, और मूत्रकृच्छ्रको नष्ट करता तथा (कचूर) हल्दी, सोया, पाक, नागकेसर, नागर- तेज, बल और वीर्यकी वृद्धि करता है। दुषले मोथा, इन्द्रजौ, काकडासिंगी, जीवक, ऋषभक मनुष्योंको पुष्टि और बन्ध्या स्त्रीको पुत्र देता है। (अभावमें विदारीकन्द), भेदा, महामेदा ( अभावमें (मात्रा---१ से २ तोले तक ।) शतावर), काकोली, क्षीरकाकोली (अभावमें अस- (नोट-कस्तूरी आसव छाननेके बाद कपड़ेगन्ध) और ऋद्धि, वृद्धि ( अभावमें बाराहीकन्द); को पोटलीमें बांधकर या सुरा (रेक्टी फाइड इनमें से हरेक चीज़ २-२ पल (१०-१० तोले) स्प्रिट ) में घोलकर डालनी चाहिए।) लेकर सबको आठगुने (१६ गुने) पानीमें पकावें। (३१२१) दशमूलारिष्टः (२) जब चौथा भाग बाकी रह जाय तो उतारकर छानले। (सु. सं. । चि. अ. ६)
इसके पश्चात् ६४ पल (४ सेर) मुनक्का को द्विपञ्चमूलीदन्तीचित्रकपथ्यानां तुलामाहत्य जल५ गुने ( ८ गुने ) पानीमें पकाकर तीन चौथाइ पानी चतुद्रीणे विपाचयेत् । ततःपादावशिष्टं कषायशेष रहने पर छानलें और इसे तथा उपरोक्त काथको मादाय सुशीतं गुडतुलया सहोन्मिश्रय घृतभाजने मिटीके अच्छे बड़े और घृतसे चिकने किये हुवे निक्षिप्य मासमुपेक्षेत यवपल्ले ततः पात: बरतनमें भर दें। साथ ही उसमें ३२ पल (६४ पल) पातमात्रांपाययेत, तेनाओग्रहणीदोषपाण्डुरोगोशहद, ४०० पल गुड, ३० पल धायके फूलोंका चूर्ण | दावारोचका न भवन्ति दीयोऽमिश्च भवति ।
और २-२ पल ( १०-१० तोले ) कंकोल, दशमूल, दन्तीमूल, चीतामूल और हर्र १००सुगन्धवाला, सफेद चन्दन, जायफल, लौंग, दार-१०० पल (६। सेर) लें और सबको अधकुटा चीनी, इलायची, तेजपात, नागकेसर, और पीपलका करके ४ द्रोण (१२८ सेर) पानी में पकावें जब पूर्ण और ४ माशे (वर्तमान तोलसे ५ माशे ) १ द्रोण पानी शेष रहे तो उसे छानकर, ठण्डा
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