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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir आसवारिष्टप्रकरणम् ] तृतीयो भागः। एवं २-२ पल पीपल, सफेद चन्दन, सुगन्ध बाला, दशमूलासवः सिद्धो दीपनो रक्तपित्तनुत् । जायफल, लौंग, दालचीनी, इलायची, तेजपात, और आनाहकफहृद्रोगपाण्डुरोगाणसादनुत् ॥ नागकेसर का चूर्ण तथा १ तोला कस्तूरी मिलाकर दशमूल, हल्दी, जीवक, ऋषभक (दोनेांके उसका मुख बन्द कर दें; और १५ दिन पश्चात् अभावमें विदारो कन्द ) और चीता ५-५ पल निकालकर छानलें तथा उसमें ५ तोले धतूरेके लेकर अधकुटा करके ४ द्रोण (१२८ सेर) पानीमें फलोंका चूर्ण मिलादें । जब स्वच्छ हो जाय तो पकावें । जब ३२ सेर पानी शेष रह जाय तो उसे बोतलोंमें भरकर रख दें। छानकर उसमें ४ पल गुड़, १ पल (५ तोले) इसे निकालनेके १५ दिन बाद यथोचित शहद, तथा १-१ पल फूलप्रियंगु, मजीठ, बायमात्रानुसार सेवन करनेसे धातुक्षय, खांसी, श्वास, | बिडंग, मुलैठी, पीपल, लोध और पठानी लोध का ६ प्रकारकी बवासीर, आठ प्रकारके उदररोग, चूर्ण मिलाकर चिकने मटकेमें भरकर उसका मुंह प्रमेह, अरुचि, पाण्डु, सर्व प्रकारकी वात व्याधियां, | बन्द करके भूमिमें दबादें; और १५ दिन पश्चात् शूल, श्वास, वमन, रक्तप्रदर, १८ प्रकारके कुष्ट, ! निकाल कर छान लें । शोथ, भगन्दर, शकेरा, मूत्रकृच्छू और अश्मरी यह 'दशमूलासव ' अग्निदीपक, रक्तपित्त आदि रोग नष्ट होते हैं । इसके सेवनसे कृश मनुष्य | नाशक तथा अफारा, कफ, हृद्रोग, पाण्डु और शरीपुष्टः पुष्ट मनुष्य अत्यन्त बलवान् वगवान् रकी पीड़ाको नष्ट करने वाला है। तेजयुक्त और वीर्ययुक्त हो जाता है तथा वन्ध्या (मात्रा-२ तोले । भोजनोपरान्त पानीमें स्त्री पुत्र उत्पन्न कर सकती है। (मात्रा १ तो.) नोट-कस्तूरी आसव छाननेके बाद कपड़ेकी डालकर पियें।) पोटलीमें बांध कर या मद्यसार (रेक्टीफाइडस्प्रिट) (३१२४) दुरालभारिष्टः (१) में मिलाकर डालनी चाहिये । (च. सं. । चि. अ. ९; ग. नि.; यो. र.) (३१२३) दशमूलासवः (२) | दुरालभायाः प्रस्थः स्याच्चित्रकस्य वृषस्य च । (वं. से. । ग्रह.) पथ्यामलकयोश्चैव पाठाया नागरस्य च ॥ द्विपञ्चमूलरजनीजीवकर्षभकचित्रकान् । दन्त्याश्च द्विपलान् भागान् जलद्रोणे विपाचयेत्। पृथक् पञ्चपलैर्भागैश्चतुर्दोणेम्भसःपचेत् ॥ पादावशेषे पूते च सुशीते शर्कराशतम् ।। द्रोणशेषे रसे पूते गुडस्य कुडवं क्षिपेत् ।। प्रक्षिप्य स्थापयेत् कुम्भे मासार्द्ध घृतभाजने । चूर्णितान्पलिकान्सन्दिद्याश्चात्र समाक्षिकान् । प्रलिप्ते पिप्पलीचव्यप्रियङ्गसौद्रसर्पिषा ॥ मियङ्गपुष्पं मञ्जिष्ठा विडॉ मधुकं कणाम् । तस्य मात्रां पिबेत्काले शार्करस्य यथावलम् । लोधं सावरकं चैव मासाई स्थापयेक्षितौ ॥ । अर्कोसि ग्रहणीदोषमुदावर्त्तमरोचकम् ॥ प्रयोग सं. ३१२० में और ३१२२ में औषधियां तो लगभग एक ही हैं परन्तु उनके परिमाणमें बहुत अन्तर है, निर्माण विधिमें भी थोड़ा अन्तर है इसी लिए इसे पृथक लिखा गया है। For Private And Personal Use Only
SR No.020116
Book TitleBharat Bhaishajya Ratnakar Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNagindas Chaganlal Shah, Gopinath Gupt, Nivaranchandra Bhattacharya
PublisherUnza Aayurvedik Pharmacy
Publication Year1928
Total Pages773
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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