________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
तैलमकरणम्ः ]
(३१०९) दूर्वाचं तैलम्
( वृ. नि. र.; वं. से. । रक्तपि. ) दूर्वामधुकमञ्जिष्ठाद्राक्षेक्षुरसचन्दनैः । शारिवाद्वयनक्तास्तैलमस्थं विपाचयेत् ॥ क्षीरं चतुर्गुणं दत्त्वा सिद्धमभ्यञ्जने हितम् । रक्तपित्तहरं ह्येतद्वयं वातघ्नमुत्तमम् ॥ दुवतैलमिति ख्यातं शशिवर्णकरं महत् ॥
दूब घास, लुलैठी, मजीठ, दाख ( मुनक्का ), सफेद चन्दन, दोनों प्रकार की सारिवा और करके कल्क तथा ईख रस और चार गुने दूधके साथ तैल पकाकर मालिश करनेसे रक्तपित्त तथा वायु नष्ट होता और बल तथा सौन्दर्यकी वृद्धि होती है।
तृतीयो भागः ।
( तिलका तैल २ सेर, कल्ककी हरेक वस्तु २|| तोले, ईखका रस २ सेर और दूध ८ खेर । )
देवदारुतैलम् (१)
( रा. मा. । कर्णरो. ) दीपिका तैल देखिये
यद्यपि राजमार्तण्ड के इस प्रयोगका पाठ दीपिका तैल पाठसे सर्वथा भिन्न है परन्तु यह प्रयोग उसके अन्तर्गत भा जाता है । (३११०) देवदारुतैलम् (२)
( रा. मा. । मुखरो. ) अग्नौ सिद्धं देवदारोः फलानां
मिश्रीभूतं वाजिनो वर्चसा यत् । तैलं तत्स्याच्छीर्षकण्ठामयानां
नाशाया नस्यकर्मप्रयोमात् ॥
[ ७९]
देवदारुके फलोंके तैलमें ४ गुना घोड़ेकी लीद (मल) का रस मिलाकर मन्दाग्निपर पकावें । जब तैलमात्र शेष रह जाय तो उसे छान 1 इसकी नस्य लेनेसे सिर और गलेके समस्त रोग नष्ट होते हैं । (३१११) देवदावदितैलम्
( च. सं. । चि. अ. २६; वं. से. । कर्ण. ) देवदारुवाण्ठशतादाकुष्ठसैन्धवैः । तैलं सिद्धं बस्तमूत्रे कर्णशूल निवारणम् ॥
देवदार, बच, सोंठ, सोया, कूठ और सेंधा । सब चीजें समान भाग मिली हुई २० तोले लेकर पानी के साथ पिसवा लें; फिर २ सेर तैल में यह कल्क और ८ सेर बकरेका मूत्र मिलाकर पकावें । यह तै कर्णशूलको नष्ट करता है । (३११२) द्रवन्त्यादितैलम्
(सु. सं. । चि. अ. २ )
द्रवन्ती चिरबिल्वश्च दन्ती चित्रकमेव च । पृथ्वीका निम्बपत्राणि कासीसं तुत्थमेव च ॥ जिवती नीली हरिद्रे सैन्धवं तिलाः । नेपाली जालिनी चैव मदयन्ती मृगादनी । भूमीकदम्बः सुबहा शुकाख्या लाङ्गलाढया || सुधामूर्ककीटारिहरितालकरञ्जिकाः ॥ यथोपपत्तिकर्त्तव्यं तैलमे तस्तु शोधनम् ॥
द्रवन्ती ( वृहद्दन्ती ), करञ्जबीज, दन्ती, चीता, बड़ी इलायची, नीमके पत्ते, कसीस, नीलाथोथा, निसोत, बच, नीलकापञ्चाङ्ग, हल्दी, दारुहल्दी, सेंधा, तिल, भूमिकदम्ब या ( गोरखमुण्डी ), काला संभालु, सिरसकी छाल, कलियारी, मनसिल, देवदाली ( बिंडाल डोढा ), मदयन्ती, इन्द्रायन,
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
For Private And Personal Use Only