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तैलप्रकरणम् ]
तृतीयो भागः ।
[ ७५ ]
रास्ना,
बासा, चमेली, नीम और आफ का स्वरस २-२ सेर और तिलका तेल २ सेर लें तथा अरण्डकी जड़, पुनर्नवा ( साठी ), असगन्ध, शतावरी, गोखरु, सोया, और सेंधा नमक १४ - १। तोला एवं सोंठ, मिर्च, पीपल, इलायची, दालचीनी, तेजपात और जटामांसी हरेक ७॥ माशे लेकर पानीके साथ पिसवा लें और फिर सब चीजोंको एकत्र मिलाकर पकावें ।
अरनी, भंगरा, सहंजना, संभालु, सन, अरण्ड | शतावरीदेवदारुकौन्तीत्व पत्रवारिजैः । कुष्ठागुरुवचायुक्तैस्तैलं सिद्धं प्रदापयेत् ॥ बस्तौ पाने तथाऽभ्यङ्गे नस्ये च परिषेचने । सर्वरोगान् जयत्येतत्संसृष्टान् मातरिश्वना || विशेषतो ह्यपस्मारमुन्मादं वातशोणितम् । स्त्रीणामपत्यजननं पुंसां चातिबलप्रदम् ॥ नराणां गद्गदानां च मूकानां वाक्प्रवर्त्तनम् । मेधाजननमायुष्यं बलवर्णाग्निवर्धनम् ॥ सर्वग्रहघ्नं विषजित् सन्निपातहरं परम् । दशाङ्गमिति विख्यातमश्विभ्यां परिकीर्त्तितम् ।।
यह
तैल आक्षेपक, हनुस्तम्भ, अपतन्त्रक, अर्दित, अपबाहुक, विश्वाची, पक्षाघात, अपतानक, स्नायु और सन्धिगतवायु, सप्तधातुगत वात, ऊरुस्तम्भ, वातरक्त और आमवातादि भयङ्कर वातव्याधियोंको नष्ट करता है ।
( आधेसे १ तोले तककी मात्रानुसार दूधमें डालकर पिलाना और शरीर पर इसकी मालिश करानी चाहिए । )
(३०९८) दशाङ्गतैलम् (२)
(ग.नि. । तैला. )
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पियाबासा, गिलोय, असगन्ध, शतावर, प्रसारणी ( खीप), नागबला ( गंगेरन ), गोखरु, पुनर्नवा ( बिसखपरा ), और खरैटी समान भाग मिलाकर ४ सेर लें और सबको अधकुटा करके ३२ सेर पानी में पकावें । जब ८ सेर पानी शेष रह जाय तो छानलें । इसी प्रकार ४ सेर रास्ना को ३२ सेर पानी में पकाकर ८ सेर शेष रहने पर छान लें। तत्पश्चात् यह दोनों काथ, निम्न लिखित चीजों का कल्क, ८ सेर तिलका तैल, तथा ८-८ सेर दही का पानी, ईखका रस, शुक्त और लाखका रस तथा ३२ सेर दूधको एकत्र मिला कर तैल मात्र शेष रहने तक पकावें ।
शैtestsमृतलता वाजिगन्धा शतावरी । प्रसारणी नागबला श्वदंष्ट्रा सपुनर्नवा ॥
बला चेति समान् भागान् रास्नारससमन्वितान् । कल्क – जटामांसी, सोया, मुलैठी, मजीठ, लाल -
विज्ञाय दोषप्रकृतिं कषायमुपकल्पयेत् ॥ तेन पादावशेषेण तिलतैलाढकं पचेत् । दधिमस्त्विनिर्यासशुक्लाक्षोदकैः समैः ॥ चतुर्गुणेन पयसा कल्कैरेभिर्प लोन्मितैः । मांसीशताहामधुकमञ्जिष्ठारक्तचन्दनैः ॥
चन्दन, शतावर, देवदारु, रेणुका, दालचीनी, तेजपात, कमल, कूठ, अगर और बच । हरेक ५-५ तोले लेकर सबको पानीके साथ पिसवा लें
I
इस तैलको पिलाने तथा बस्ति, नस्य, परि
लाक्षा
१ - लाखको कपड़े में बांधकर ६ गुने पानीमें दोलायन्त्र विधिसे पकाकर २१ बार छान लें। यही " रस " है । 'शुक्त' बनाने की विधि मारत भै. र. प्रथम भाग पृष्ट ३५४ पर देखिये.
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