SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 87
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir [७६] भारत-भैषज्य-रत्नाकरः। [दकारादि - - षेचन, और अभ्यङ्गादि द्वारा प्रयुक्त करने से सम- एकत्र मिलाकर मन्दाग्निपर पकावें । और तेल स्त वातज रोग विशेषतः अपस्मार, उन्माद, वातरक्त, मात्र शेष रहने पर छान लें। गद्गदता ( हकलाना ), गूंगापन, सर्व ग्रह, विष | कल्क–सांठ, मिर्च, पीपल, हर्र, बहेड़ा, और सन्निपात ज्वर आदि नष्ट होते और स्त्रियों में आमला, मोथा, चव, जीरा, सेंधा, तेजपात, इलापुत्रोत्पादनको शक्ति तथा पुरुषों में बल, वीर्य, | यची, दालचीनी, नागकेसर, सौंफ, जटामांसी, मेधा, आयुष्य वर्ण और जठराग्निकी वृद्धि होती है। लौंग, जावित्री, जायफल, धनिया, अजवायन, (३०९९) दाडिमाद्यं तैलम् (१) अजमोद, सुगन्धबाला, कञ्चटा (जल चौलाई), (भै. र. । संग्र.) अतीस, मण्डूकपर्णी, सिंघाड़ेके पत्ते, कटेली, कटेला, दाडिमत्वग्जलं धान्यं वत्सकस्य त्वचस्तथा । आम और जामनके पत्ते तथा छाल, मजीठ ( या प्रत्येकमाढकं ग्राह्यं जलद्रोणे पचेत्पृथक् ॥ लजाल ), इन्द्रजौ, शतावर, धायकी जड़, बेलगिरि, चतुर्भागावशिष्टन्तु तक्रमाढकसम्मितम् । मोचरस, मूसली, कुड़ेकी छाल, खरैटी, गोखरु, पचेत्तैलाढकं धीमान गर्भ दत्वा भिषग्वरः ।। लोध, पाठा, खैरकी लकड़ी, गिलोय और सेंभलकी त्रिकटुं त्रिफला मुस्तं चन्यजीरकसैन्धवम् ।। छाल; हरेक २॥--२॥ तोले लेकर सबको चातुर्जातं मधुरिका मांसी च देवपुष्पकम् ॥ चावलोंके पानी ( तण्डुलोदक ) के साथ पीस लें। जातीकोषफले धान्यं यमान्यौ बालकन्तथा । यह तैल भयङ्कर संग्रहणी, बीस प्रकारके कञ्चटातिविषा भेकी शृङ्गाटं वृहतीद्वयम् ॥ द्वयम् ॥ । प्रमेह और ६ प्रकारकी बवासीरको नष्ट करता है। आम्रजम्बुत्वचः पर्णी समजेन्द्रयवं वरी। । | (३१००) दाडिमाद्यं तेलम् (२) धातकी विल्वमोचञ्च मुषली वत्सकम्बला ॥ । (रा. मा.। स्तनरो.) श्वदंष्ट्रा लोध्रपाठाश्च काष्ठं खागिरमेव च ।। विपाचितं दाडिमकल्कयुक्तं अमृता शाल्मली त्वक् च सर्वमर्द्धपलोन्मितम् ॥ तैलं भवेत्सर्षपसम्भवं यत् । पिष्टवा तण्डुलतोयेन साधयेन्मृदुनाग्निना । ग्रहणी हन्ति दुरां प्रमेहानपि विशंतिम् ॥ अभ्यञ्जनात्तत्कुरुते नितान्तअशीसि षड्विधान्येव नाशयेन्नात्र संशयः ॥ मुच्चैः स्तनौ पृद्धियुतौ च कर्णौ ॥ ___ अनारकी छाल, सुगन्धबाला, धनिया और अनारकी छालका कल्क १३ तोले ४ माशे, कुडेकी छाल । हरेक ४-४ सेर लेकर हरेकको सरसोंका तेल २ सेर और पानी ८ सेर । सबको एकत्र अलग अलग ३२-३२ सेर पानीमें पकावें और | मिलाकर पकावें । जब पानी जल जाय तो तेलको ८-८ सेर पानी शेष रहने पर छानकर सब काथोंको छान लें। एकत्र मिलालें । तत्पश्चात् यह काथ, ८ सेर तक, | इसकी मालिशसे स्तन अत्यन्त उन्नत और ८ सेर तेल और नीचे लिखी चीजोंका कल्क | कान बड़े हो जाते हैं । For Private And Personal Use Only
SR No.020116
Book TitleBharat Bhaishajya Ratnakar Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNagindas Chaganlal Shah, Gopinath Gupt, Nivaranchandra Bhattacharya
PublisherUnza Aayurvedik Pharmacy
Publication Year1928
Total Pages773
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy