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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org तैलप्रकरणम् ] छोटी इलायची, सफेद चन्दन, देवदारु, ज्योति - ष्मती लता ( मालकंगनी ), खस, अतीस, लाख, कूठ, बच और तगरके २० तोले कल्कको एकत्र मिलाकर पकावें । काथ और दूध जलने पर छान लें। तृतीयो भागः । यह तैल वात व्याधिको अत्यन्त शीघ्र नष्ट करता और बल, वीर्य, सौन्दर्य, रुचि तथा जठरामिकी वृद्धि करता है । यह राजा, वृद्ध, बालक और स्त्रियोंके लिए हितकारी है । (३०९४) दशमूला तैलम् (१) (ग. नि. । तैला . ) दशाङ्किकेशरारिष्टब्राह्मीपाठाकटुत्रिकैः । शठीपुनर्नवा भार्गीसुरसाम्बुफलत्रिकैः ॥ शङ्गपुष्पीत्व गेलार्कमुनिपादपपल्लवैः । अङ्कोटवरुणास्फोत शिरीषकटभीफलैः ॥ कृमिघ्नमूलशम्पाक सर्वपामरदारुभिः । प्रियङ्गुहिङ्गुमञ्जिष्ठासुमुखातन्दुलीयकैः ॥ गिरिकर्णी व चाकुष्ठकङ्कष्ठरजनीद्वयैः । मधुकसा रसिन्धूत्थसितनीलोत्पलाम्बुदैः ॥ कटुतैलं समैरेमिः पर्क क्षीरे चतुर्गुणे । सोन्मादं हन्त्यपस्मारं पानाभ्यञ्जननावनैः ॥ डाकिनीभूतवेतालनैगमेषादिकान् ग्रहान् । कृत्याभिचाररक्षांसि नाशयत्यखिलान्यपि ॥ तैलमेतत्सुरेन्द्रेण नन्दस्य कथितं पुरा । बालस्य free रक्षार्थी विष्णोरमिततेजसः ॥ अभ्यज्य सर्वगात्राणि भोक्तव्यं रिपुवेश्मनि । तैलमभ्यञ्जनं श्रेष्ठं वसतोऽ रातिसङ्कटे ॥ Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir [ ७३] अथ विलिप्तभगा भगशालिनी यदि रमेत नरं दिवसे शुभे । मदनसायकजर्जरितो रसो भवति तस्य तयापहृतं मनः ॥ ताम्बूलमुखवासेषु व्यञ्जनाहारयोगतः । अनामिकाग्रसंयुक्तं वशीकरणमुत्तमम् ॥ दशमूल, नागकेसर, नीमकी छाल, ब्राह्मी,. पाठा, सांठ, मिर्च, पीपल, कचूर, पुनर्नवा (बिसखपरा ), भारंगी, तुलसी, सुगन्धवाला, हर्र, बहेड़ा, आमला, शंखपुष्पी, दालचीनी, इलायची, आक और अगथिया के पत्ते, अङ्कोटके फल, बरनेकी छाल, आस्फोता, सिरसकी छाल, मालकंगनी, बायबिडंगकी जड़, अमलतास, सरसों, देवदारु, फूलप्रियङ्गु, हींग, मजीठ, सुमुखा (काली तुलसी), चौलाई की जड़, अपराजिता, बच, कूठ, कंकुष्ठ, हल्दी, दारूहल्दी, महुवेके वृक्षका सार, सेंधानमक, सफेद कमल और नागरमोथा । सब चीजें समान भाग मिलाकर २० तोले लें और सबको पानी के साथ पिसवा कर कल्क बनावें; फिर २ सेर सरसोंके तेलमें यह कल्क और ८ सेर दूध ( तथा ८ सेर पानी ) मिलाकर पकावें । जब दूध और पानी जल जाय तो तैलको छान लें। इसे पीने और इसकी मालिश करने तथा नस्य लेनेसे उन्माद, अपस्मार और बालकोंके भूत, डाकिनी, बेताल, नैगमेषादि ग्रह शान्त होते हैं । Treath शरीरपर इसकी मालिश करते रहने से उन्हें राक्षस और अभिचार जनित व्याधियोंका भय नहीं रहता । इस तैल में अनामिका उंगली भिगोकर उससे १ बूंद पान या आहारादिके किसी पदार्थ पर For Private And Personal Use Only
SR No.020116
Book TitleBharat Bhaishajya Ratnakar Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNagindas Chaganlal Shah, Gopinath Gupt, Nivaranchandra Bhattacharya
PublisherUnza Aayurvedik Pharmacy
Publication Year1928
Total Pages773
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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