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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org [ ७२] दशमूलमिदं तैलं शिरोरोगनिषूदनम् । सूर्यावर्त्तममिष्यन्दं जलदोषं च नाशयेत् ॥ - भैषज्य रत्नाकरः । भारत सरसोंका तैल २ सेर, दशमूलका काथ ८ सेर, दूध ४ सेर तथा अष्टवर्ग ( काकोली, क्षीरकाकोली, मेदा, महामेदा, ऋद्धि वृद्धि, जीवक और ऋषभक) का कल्क २० तोले (हरेक २|| तोले ) लेकर सबको एकत्र मिलाकर पकावें । यह तैल वातज, पित्तज, कफज और सन्निपातज शिरोशूल, सूर्यावर्त अभिष्यन्द और जलदोष से उत्पन्न शिरोरोगों को नष्ट करता है। (३०९०) दशमूलादितैलम् (१) (बृ. मा. यो. र. ग. नि.; धन्व; र. र.; च. द; भै. र. । . ) दशमूलीकषायेण तैलप्रस्थं विपाचयेत् । एतत्कर्णे प्रदातव्यं बाधिर्ये परमौषधम् ॥ २ सेर दशमूलको १६ सेर पानी में पकावें; जब ४ सेर पानी शेष रह जाय तो छानकर उसमें १ सेर तैल मिलाकर काथ जलने तक पकावें इसे कान में डालने से बधिरता जाती रहती है। इस रोगके लिये यह एक महौषध है । (३०९१) दशमूलादितैलम् (२) ( वृ. नि. र. । गुल्म. ) दशमूलकणा द्राक्षा श्यामा धात्री पलं पलम् । stries तैलस्य प्रस्थषट्कं गवां पयः ॥ पचेतैलाव शेषन्तु तत्तैलं कफगुल्मनुत् ॥ दशमूल, पीपल, मुनक्का, काली निसोत : और आमला ५-५ तोले लेकर सबको पिसवा कर कल्क बनावें फिर २ सेर अरण्डके तेलमें यह कल्क [ दकारादि और १२ सेर गायका दूध ( तथा ८ सेर पानी ) मिलाकर पकावें । जब दूध और पानी जल जाय तो तैलको छान लें । 1 यह तैल कफगुल्म को नष्ट करता है । ( मात्रा - २ से ४ तोले तक गरम दूध या दशमूलके अर्क में डालकर पियें । ) (३०९२) दशमूलादितैलम् (३) ( यो. र. । दन्त; वृ. यो त । त. १२८ ) दशमूली कषायेण तैलं वा घृतमेव वा । विपकं केवलं शस्तं सक्षौद्रं दन्तचालने ॥ कराले दन्तहर्षे च कापाल्यां सौषिरद्वये । गण्डूषधारणाले पात्पानान्नस्याच शस्यते Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ८ सेर दशमूलके काथके साथ २ सेर तैल या घी मिलाकर पकावें । इसमें आधासेर शहद मिलाकर, कुल्ले करने, नस्य लेने, पीने और लगासे दांतोका हिलना, कराल, दन्त हर्ष, कपाली, सौर आदि दन्त रोग नष्ट होते हैं । (३०९३) दशमूलादि तैलम् (४) ( यो. र. । वात; वृ. यो त । त. ९० ) दशमूलकपायविपक्कमथो पयसा च समेन बलाद्वनलैः । त्रुटि चन्दनदारुलतानलदैररुणाजतुकुष्ठवचाकुटिलैः ॥ इति पकमिदं तिलजं जयति प्रसभं पवनामयमाशु नृणाम् । बलशुक्रविभारुचिवह्निकरं नृपवृद्ध शिशुप्रमदाषु हितम् ॥ दशमूलका काथ ८ सेर, दूध २ सेर, तिलका तेल २ सेर और खरैटी, नागरमोथा, तालीसपत्र For Private And Personal Use Only
SR No.020116
Book TitleBharat Bhaishajya Ratnakar Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNagindas Chaganlal Shah, Gopinath Gupt, Nivaranchandra Bhattacharya
PublisherUnza Aayurvedik Pharmacy
Publication Year1928
Total Pages773
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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