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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra ४१५३ पिप्पल्यरिष्टः ४१५८ पुष्करमूलासवः ४६९८ बब्बूल्यासवः भृङ्गराजासवः संख्या प्रयोगनाम मुख्य गुण ४१५२ पिप्पलीमूलाद्योऽरिष्टः क्षय, खांसी, ज्वर, तिल्ली, अग्निमांद्य । ४७०७ बल्यादि लेपः लेप-प्रकरणम् ३१९६ दरदेश्वरो रसः ३२०८ दिव्यामृत रसः ३६०९ नवायस चूर्णम् (वृहत् ) www.kobatirth.org चिकित्सा - क्षय, ज्वर, खांसी, अरुचि । क्षय, खांसी, शोथ । रस-प्रकरणम् - पथ-प्रदर्शिनी क्षय, खांसी, श्वास । क्षय, खांसी और कृ तथा शतानाशक अत्यन्त बलवर्द्धक | राजयक्ष्मा में होने वाला शिरशूल, पार्श्वशूल, अंशशूल । क्षय, खांसी आदि श्वास, खांसी, क्षय, ज्वरादि । अग्निमांध, ग्रहणी | राजयक्ष्मा । क्षय, खांसी, श्वास, ज्वर, शोथ, संख्या प्रयोगनाम ३६६० नीलकण्ठ रसः ४२८२ पञ्चामृत पर्पटी ( भैरव नाथी ) ४२८६ पञ्चामृत रसः ४२८८ Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir " " 39 "" ४२९२ ४४३० पूर्णचन्द्रो रसः ४४७५ प्राणदा पर्पटी ४४७६ प्राणनाथ रसः ४४७७ प्राणनाथ रसः For Private And Personal Use Only ४४७९ प्राणी कल्पद्रुम गोल रसः ४९४७ भास्करो रसः [ ७४९ ] मुख्य गुण राजयक्ष्मा । सम्पूर्णलक्षणयुक्त क्षय, श्वास, खांसी, छर्दि, प्रसेक, अरुचि । राजयक्ष्मा, खांसी, श्वास, अग्निमांद्य, शिरोरोग | त्रिदोषज, क्षय, खांसी, ज्वर । राजयक्ष्मा । राजयक्ष्मा, पित्तज्वर, शोष, पाण्डु । अतिसार, ज्वर, खांसी, यक्ष्मा, अग्निमांध | दुस्साध्य राजयक्ष्मा, शोथ, ग्रहणी, ज्वर । राजयक्ष्मा, शोष, ज्वर, ग्रहणी आदि । क्षय, शोष, पित्तरोग, खांसी, श्वा सादि । राजयक्ष्मा, कफ, वायु ।
SR No.020116
Book TitleBharat Bhaishajya Ratnakar Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNagindas Chaganlal Shah, Gopinath Gupt, Nivaranchandra Bhattacharya
PublisherUnza Aayurvedik Pharmacy
Publication Year1928
Total Pages773
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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