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४१५३ पिप्पल्यरिष्टः
४१५८ पुष्करमूलासवः
४६९८ बब्बूल्यासवः भृङ्गराजासवः
संख्या प्रयोगनाम
मुख्य गुण
४१५२ पिप्पलीमूलाद्योऽरिष्टः क्षय, खांसी, ज्वर, तिल्ली, अग्निमांद्य ।
४७०७ बल्यादि लेपः
लेप-प्रकरणम्
३१९६ दरदेश्वरो रसः ३२०८ दिव्यामृत रसः
३६०९ नवायस चूर्णम्
(वृहत् )
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चिकित्सा -
क्षय, ज्वर, खांसी, अरुचि ।
क्षय, खांसी, शोथ ।
रस-प्रकरणम्
- पथ-प्रदर्शिनी
क्षय, खांसी, श्वास । क्षय, खांसी और कृ
तथा
शतानाशक अत्यन्त बलवर्द्धक |
राजयक्ष्मा में होने
वाला शिरशूल, पार्श्वशूल, अंशशूल ।
क्षय, खांसी आदि श्वास, खांसी, क्षय, ज्वरादि ।
अग्निमांध,
ग्रहणी |
राजयक्ष्मा । क्षय,
खांसी, श्वास, ज्वर,
शोथ,
संख्या
प्रयोगनाम
३६६० नीलकण्ठ रसः ४२८२ पञ्चामृत पर्पटी ( भैरव नाथी )
४२८६ पञ्चामृत रसः
४२८८
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४२९२ ४४३० पूर्णचन्द्रो रसः
४४७५ प्राणदा पर्पटी
४४७६ प्राणनाथ रसः
४४७७ प्राणनाथ रसः
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४४७९ प्राणी कल्पद्रुम
गोल रसः
४९४७ भास्करो रसः
[ ७४९ ]
मुख्य गुण
राजयक्ष्मा ।
सम्पूर्णलक्षणयुक्त क्षय, श्वास, खांसी,
छर्दि, प्रसेक, अरुचि ।
राजयक्ष्मा, खांसी,
श्वास, अग्निमांद्य, शिरोरोग |
त्रिदोषज, क्षय, खांसी, ज्वर ।
राजयक्ष्मा ।
राजयक्ष्मा, पित्तज्वर, शोष, पाण्डु । अतिसार, ज्वर, खांसी,
यक्ष्मा, अग्निमांध | दुस्साध्य राजयक्ष्मा, शोथ, ग्रहणी, ज्वर । राजयक्ष्मा, शोष,
ज्वर, ग्रहणी आदि ।
क्षय, शोष, पित्तरोग, खांसी, श्वा
सादि ।
राजयक्ष्मा, कफ, वायु ।