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चिकित्सा-पथ-प्रदर्शिनी
[७४७]]
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संख्या प्रयोगनाम ४४२४ पुष्पधन्वा रसः ४४२५ , ,
४४२६ , " ४४३१ पूर्णचन्द्रो ,
मुख्य गुण । संख्या प्रयोगनाम मुख्य गुण वाजीकरण । ४४५७ प्रमदेभाङ्कुश रसः कामिनीमद भनक, बल तथा आयु
अत्यन्त स्तम्गक, वर्द्धक, अत्यन्त वा
नपुंसकता नाशक । जीकरण । ४७३९ बाकुच्यादि लोहम् जरा, मृत्यु, विष । अत्यन्त वाजीकरण।
४९६६ भैरव रसः रसायन । पुष्टि, वीर्य तथा
४९७३ भोगपुरन्दरीगुटिका शुक्र स्तम्भक, अअग्नि वर्द्धक एवं
त्यन्त वाजीकरण पित्तरोग और कृ
तथा बलमांस वर्द्धक शता नाशक ।
मिश्र-प्रकरणम् दुर्बल मनुष्यको १ | ३३४० धात्री योगः रसायन । मासमें ही बलवान : ४५११ पीलु रसायनम् । अर्श, ग्रहणी, गुल्म, बना देता है।
आदिमें अमृतोपमा बल्य, रसायन, वा- ४५३८ फलद्रावः वाजीकरण । जीकर
४४३२
,
,
४४३३
,
"
४५३९
॥
(४२) राजयक्ष्माधिकारः कषाय-प्रकरणम्
३२६० धान्यकादि काथः पार्श्व पीड़ा, ज्वर,
श्वास । २८३७ दशमूलादि काथः खांसी, ज्वर, क्षय, ३८३३ पिप्पल्यादि कषायः पसली शूल, ज्वर, निर्बलता।
श्वास। २८४३ दशमूलादिपञ्च
| ४५४९ बलादि कल्कः क्षतक्षय । दशाङ्गः क्षय, खांसी; पसली,
चूर्ण-प्रकरणम् कन्धे और शिरकी
२९८४ द्राक्षादि चूर्णम् ज्वर, खांसी, शोथ। पीड़ा। २९८८ , ,
कृशता, शोष, क्षय, २९३३ द्राक्षा रसादियोगः रक्तपित, क्षतक्षय,
रक्तपित्त, अग्निखांसी।
मांध ।
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