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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra [ ७४६] संख्या प्रयागनाम ४६९६ बृहती तैलम् "3 ४८८५ भल्लातक ४८८६ भल्लातक तैल- रसायनम् ३१२० दशमूलारिष्टः ३१२९ द्राक्षासवः ३१३२ ३५२५ नारिकेलासवः 23 आसवारिष्ट-प्रकरणम् (महा) ३५३२ नागरादि लेपः ३५४६ निर्गुण्ड्यादिप्रयोगः ४९०६ भल्लातकादि लेप: नपुंसकता । रसायन । मुख्य गुण 79 लेप-प्रकरणम् दुबले मनुष्यों को पुष्ट करता तथा वीर्य और तेज चिकित्सा - पथ की वृद्धि करता है। अत्यन्त वाजीकरण | अत्यन्त वीर्यवर्द्धक । कामशक्ति तथा सौ न्दर्य वर्द्धक, बलि पलित नाशक www.kobatirth.org नपुंसकता । शरीरकी झुर्रियां । लिङ्गको पुष्ट और वृहद् करता है । रस-प्रकरणम् ३२०६ दिव्यखेचरी गुटिका रसायन । ३२०७ दिव्यखेचरी वटिका ३२०९ दिव्यामृत रस: ३३२७ धातुबद्ध रसः 17 19 19 - प्रदर्शिनी संख्या प्रयोगनाम ३३२९ धात्री लोहम् ३३३३ धात्र्यादि प्रयोगः ३६३९ नागेश्वर विधिः ३६५२ नारीमत्तगजाङ्कुशरसः ४२६१ पश्चबाणो रसः ४२६६ पञ्चशरो रसः ४२६७ पञ्चसायकः ४२८७ पञ्चामृत रसः ४२८९ ४२९५ ४२९६ " " " Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir 19 }} For Private And Personal Use Only 17 ४२९८ ४३०३ पतङ्गयोगः ४३०४ पथ्यादि चूर्णम् ४३०६ पथ्यादि योग: ४३३३ पारद गुटिका "" " ४३८६ पारदादि योग: मुख्य गुण वाजीकरण | रसायन । अत्यन्त वाजीकरण | 19 " "7 "7 लिङ्गवर्द्धक | अत्यन्त वाजीकरण समस्त रोग । रसायन । 99 19 31 सप्तधातु, बल, बुद्धि कान्ति रुचि और अग्नि वर्द्धक, तथा कफरोग, बन्ध्यत्व और नपुंसकता नाशक एवं रसायन । समस्त रोग । अत्युत्तम शुक्रस्तम्भ है। वृद्धावस्थाको नहीं आने देता । वृद्धावस्था । कमर में बांधने से वीर्य स्तम्भन होता है । वीर्यस्तम्भ |
SR No.020116
Book TitleBharat Bhaishajya Ratnakar Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNagindas Chaganlal Shah, Gopinath Gupt, Nivaranchandra Bhattacharya
PublisherUnza Aayurvedik Pharmacy
Publication Year1928
Total Pages773
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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