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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir चिकित्सा-पथ-प्रदर्शिनी [७४५] - संख्या प्रयोगमाम मुख्य गुण संख्या प्रयोगनाम मुख्य गुण ४६१६ बलादि चूर्णम् वाजीकरण । सर्प काट खाय तो ४८४३ भृङ्गराज रसायनम् पलित । वह स्वयं ही मर ४८४४ , , जाता है। ४८४५ भृङ्गराजादि चूर्णम् रसायन । रोगों से बचाता है। घृत-प्रकरणम् ४८४६ , रसायन । ३४८० नारसिंहघृतम् अत्यन्त बल तथा सौन्दर्य वर्द्धक । ३४८१ , , अवलेह-प्रकरणम् अत्यन्त वाजीकरण। ४६७७ ब्राह्मी ३०२४ दासरसायन लौहम् रसायन । (सारस्वत) , स्वर, कान्ति, स्मृति ३४६६ नागरायोवलेहः मेधा और शुक्र २४७१ नारिकेल पाकः नपुंसकता नाशक, वर्द्धक । वीर्यवर्द्धक । ४६७८ ब्राह्मी घृतम् समस्त इन्द्रियों के ४०३३ पिष्टीपाकः कमरके दर्द तथा बल और आयुकी कृशता को नष्ट क वृद्धि तथा अपस्मारता है । उत्तम र, उन्माद और वाजीकरण है। ज्वरका नाश क४०३९ पूग खण्डः प्रमेह, बन्ध्यत्व आ रता है। दि नाशक; उत्तम वाजीकरण । तैल-प्रकरणम् ४०४० पूगपाकः (बृहद्) नपुंसकता, प्रमेह, ३१०१ दाडिमाचं तैलम् लिङ्ग वर्द्धक । हाथ पैरांकी दाह, का दाह, ४११९ पलाशवीज , १९ नपुंसकता, हस्तक्रिअग्निमांध । याके दोष । (तिला ४६४६ बादाम पाक उत्तम वाजीकरण । ४६५३ ब्राह्मी रसायन रसायन । ४१२२ पानीनाशक , इन्द्रीकी नसांका इसके सेवनसे शरी पानी निकाल कर रपर विषका प्रभाव नपुंसकता दूर कर नहीं होता; यदि देता है। For Private And Personal Use Only
SR No.020116
Book TitleBharat Bhaishajya Ratnakar Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNagindas Chaganlal Shah, Gopinath Gupt, Nivaranchandra Bhattacharya
PublisherUnza Aayurvedik Pharmacy
Publication Year1928
Total Pages773
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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