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[७४४]
चिकित्सा-पथ-प्रदर्शिनी
संख्या प्रयोगनाम मुख्य गुण
तैल-प्रकरणम् ३१०९ दूर्वा तैलम् रक्तपित्त, वायु ।
लेप-प्रकरणम् ३३१७ धात्री लेपः नकसीर ।
। संख्या प्रयोग नाम मुख्य गुण ३१८४ दाडिमादि नस्यम् नकसीर ३१८५ " ४२५६ प्रियङ्वादि , रक्तपित्त । ४२५७ प्लाण्ड्वादि , नकसीर ।
नस्य-प्रकरणम् १९८२ दाडिमकुमुमरस
प्रयोगः नकसीर ।
मिश्र-प्रकरणम् ४४९४ पञ्चमूल्यादि पेया रक्तातिसार, अधो
गत रक्तपित्त ।
(४१) रसायनवाजीकरणाधिकारः कराय-प्रकरणम्
और इन्द्रियां विकार ३२५६ धान्यादि योगः वृद्धावस्था
रहित रहती हैं। ४१५९ बल्यमहाकषायः
३४१८ नागवल्याचं चूर्णम् वीर्यवर्द्धक, स्तम्भक, ४५९९ बहणीय महाकषायः
रसायन। ४७७९ भल्लातक क्षीरम् रसायन ३४३१ नारसिंह चूर्णम् जरा, व्याधि, बलि, ४७८० , क्षोद्रम् ॥
पलित, खालित्य, ४७८१ , रसायनम् शुक्रशोधक, बलि
प्रमेह आदि । पलितनाशक, कुष्ठ- ३९१४ पलाशबीजादियोगः १ मास तक सेवन कृमि नाशक।
करनेसे वृद्धभी तरु४७८४ भल्लातकादि योगः अत्यन्तवाजीकरण ।
णके समान हो ४८१२ भृङ्गराज रसायनम् रसायन
जाता है।
३९८१ पुनर्नवा योगः वृद्ध भी नवीन शचूर्ण-प्रकरणम्
रीर प्राप्त करता है। २९९२ द्राक्षादि प्रयोगः धातुक्षीणता, बल- ४६१२ बब्बूरादि प्रयोगः कृशपुरुषको स्थूल
करता है । देहक३२७५ धान्यादि चूर्णम् इसके सेवनसे आयु
म्प और शोषमें हिपर्यन्त बाल काले ।
तकारी है।
हास।
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