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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir [६६२] भारत-भैषज्य-रत्नाकरः। [भकारादि कोमला निर्मला: केशा वृद्धानामपि देहिनाम् ॥ संभालुका स्वरस बिना गर्म किये हुवे ही पी जायं । जायन्ते सकले देहे कल्पकर्तुर्न संशयः। तत्पश्चात् सुपारी और इलायची आदि सुगन्धित शरीरं नूतनं कुर्यादृढा दन्ता भवन्ति च ॥ | पदार्थ युक्त पान खावें । अतिप्रभ शुभं तस्य शरीरं जायतेतराम् । इसके २ पहर बाद दूध, भात, खांड, मूंग एवं षण्मासपर्यन्तं भृङ्गराजस्य नित्यशः॥ | और घृतयुक्त भोजन करें। इनके अतिरिक्त अन्य कल्पं कुर्यात्मयत्नेन नरो देवसमो भवेत् । । | कोई चीज़ न खावें । माहात्म्यं शक्यते नास्य वक्तुं कल्पशतैरपि ।। ___भंगरेके सूक्ष्म बीजांको बो कर त्रिफलेके काथ इस प्रकार ६ मास तक भंगराज सेवन से सींचें। इससे जो भंगरा उत्पन्न होगा वह करनेसे वृद्ध मनुष्यके बाल भी कोमल और निर्मल अत्यन्त कोमल होगा। प्रति दिन प्रातः काल | हो जाते हैं । शरीर नवीन और दांत दृढ़ हो उसके कोमल कोमल पत्ते ( कॉपल) लेकर तिलेोके | जाते हैं तथा शरीर अत्यन्त कान्तिमान् देवतुल्य साथ मिलाकर चबावें और ऊपर से २ चुल्लू | हो जाता है। इति भकारादिकल्पप्रकरणम् । अथ भकारादिरसप्रकरणम्। (४९३४) भक्तपाकवटी (बृहत्) । विड्बन्धे कफजे त्रिदोषजनिते (भुक्तपाकवटी) ___ ह्यामानुबन्धेऽपि च ॥ (र. सा. सं.; र. रा. सु. । अजीर्णा.) मन्दामौ विषमज्वरे च सकले शूले अभ्रं पारदगन्धको सदरदौ ताम्रश्च तालं शिला त्रिदोषोद्भवे बङ्गश्च त्रिफला विषश्च कुनटी भाव्याश्च हन्यात्तानपि भक्तपाकवटिका भूयश्च सामं दन्त्यम्बुना। __ जयेत् ॥ शृङ्गी व्योषयमानिचित्रजलदं वे जीरके टङ्कणं एलापत्रलवाहिङ्गुकुटकीजातीफलं सैन्धवम् ।। __ अभ्रकभस्म, शुद्ध पारद, शुद्ध गन्धक, शुद्ध एतान्याईकचित्रदन्तिसुरसावासानीरैबिल्वजैः शिंगरफ (हिंगुल ), ताम्र भस्म, हरताल, दन्तीके पत्रोत्यैरपि सप्तधा सुविमले खल्ले विभाव्यान्यतः। काथमें घोटा हुवा मनसिल, बंगभस्म, हरै, बहेड़ा, खादेवल्लमितं तथा च सकलव्याधी आमला, शुद्ध बछनाग, काकड़ासिंगी, सांठ, मिर्च, प्रयोज्या बुधै- । पीपल, अजवायन, चीतेकी जड़, नागरमोथा, सफेद For Private And Personal Use Only
SR No.020116
Book TitleBharat Bhaishajya Ratnakar Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNagindas Chaganlal Shah, Gopinath Gupt, Nivaranchandra Bhattacharya
PublisherUnza Aayurvedik Pharmacy
Publication Year1928
Total Pages773
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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