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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org धूपप्रकरणम् ] इसे बिजौर नीबूके रसमें पीसकर लेप करनेसे भरेका विष तुरन्त नष्ट हो जाता है । (४९२०) भृङ्गादिलेप: ( वै. म. र. । पटल १६ ) जित्वेन्द्रलुप्तं रोमाणि जनयेद्भृङ्गजो रसः । तृतीयो भागः (४९२१) भुजङ्गादिनाशकधूपः (व. से. । कृमि . ) इति भकारादिलेपप्रकरणम् । [ ६५७ ] चिश्चामलकयोश्चापि काललोहसमन्वितः ।। भंगरे अथवा इमली और आमले के रस में कृष्ण लोहके महीन चूर्णको पीसकर लेप करनेसे इन्द्रलुप्त (गंज ) का नाश होकर बाल निकल आते हैं । अथ भकारादिधूपप्रकरणम् । -1926 लाक्षा भल्लातकथ श्रीवासः श्वेताऽपराजिता । अर्जुनस्य फलं पुष्पं विडङ्गं सर्जगुग्गुलुः || एभिः कृतेन धूपेन शाम्यन्ति नियतं गृहे । भुजङ्गमूषकादंशाघुणामशकमत्कुणाः ॥ Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir लाख, भिलावा, तारपीनका तेल, सफेद कोयल, अर्जुन के फल और पुष्प, बायबिडंग, राल और गूगल समान भाग लेकर गूगलको तारपोनके तेल में घोट लें और अन्य ओषधियों का चूर्ण करके उसमें मिला लें । धरमें इसकी धूप देने से सांप, चूहे, डांस घुण, मशक और खटमल दूर हो जाते हैं। इति भकारादिधूपप्रकरणम् । (४९२२) भद्रमुस्तायोगः (ग. नि. । नेत्ररोगा . ) छागमूत्रेण सङ्घृष्टभद्रमुस्ताञ्जनेन हि । चिरकालोद्भवं पुष्पं रक्तत्वं चापि नश्यति ॥ अथ भकाराद्यञ्जनप्रकरणम् । बकरीके मूत्र में नागरमोथेको घिसकर आंख में आंजने से पुरानी फूली और आंखोकी लाली नष्ट हो जाती है । For Private And Personal Use Only
SR No.020116
Book TitleBharat Bhaishajya Ratnakar Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNagindas Chaganlal Shah, Gopinath Gupt, Nivaranchandra Bhattacharya
PublisherUnza Aayurvedik Pharmacy
Publication Year1928
Total Pages773
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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