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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org [६५८] (४९२३) भानुमतीवतः (१) (लघु) ( ग. नि. । नेत्ररोगा. ३ ) भारत - भैषज्य रत्नाकरः । art करञ्जवृक्षस्य निस्तुषं द्विदलीकृतम् । चूर्णितं भावयेत्सम्यङ्मुख्याज्ञ्जनदशांशकम् ॥ जातीरसे सप्ताहं पिष्ट्वा तेनैव कल्पिता । वर्तर्भानुमती नाम छायायां परिशोषिता ।। तोयघृष्टाऽञ्जनाद्धन्ति तिमिरं भास्करो यथा । सुखस्वभावबोधं च कुरुते शीलिता ध्रुवम् ॥ करञ्जके बीजोंका छिलका अलग कर दें और फिर उनका बारीक चूर्ण बना लें । तदनन्तर उसमें उससे दस गुना काला सुरमा मिलाकर सबको २१ दिन तक चमेली के रसमें घोटकर वर्तियां बना लें और उन्हें छाया में सुखाकर रक्खें । इन्हें पानी में घिसकर आंख में आंजनेसे तिमिर नष्ट होता है । (४९२४) भानुमतीवर्तिः (२) (वृहत् ) ( ग..नि. | नेत्ररोगा. र. का. धे. । अ. ५३ ) शुक्लोपला जलनिधिमभवश्च फेनः शैलेयचन्दनयुता खलु शङ्खनाभिः । भागानिमान् समरिचान् समनःशिलांशान् कुर्याद्रसाञ्जनचतुर्गुणसंप्रयुक्तान् ॥ नक्तान्ध्यपिल्लतिमिरक्षतकाचकण्डू शुक्लाक्षिपाककफदोषकृतांश्च रोगान् । भानुर्यथैव तिमिराण्यपहन्ति नूनं मध्वायुता जयति भानुमतीह वर्तिः || मिश्री, समुद्रफेन, भूरिछरीला, लाल चन्दन, शंखनाभि, कालीमिर्च और मनसिल ९ - १ भाग Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir [ भकारादि तथा रसौत ४ भाग लेकर सबको अत्यन्त बारीक खरल करके बत्तियां बना कर छाया में । इन्हें आंख में लगानेसे नक्तान्ध्य सुखा लें ( रतौंधा ), पिल, तिमिर, क्षत, काच, कण्डू, फूला, नेपाक और अन्य कफज रोग नष्ट होते हैं । (४९२५) भास्करचूर्णम् ( वा. भ. । उ. अ. १३ ) निर्दग्धं बादराङ्गारैस्तुत्थं चेत्थं निषेचितम् । क्रमादजापयः सर्पिः क्षौद्रे तस्मात्पलद्वयम् ॥ कार्षिकैस्ताप्यमरिचस्रोतोजकटुकानतैः । पटुरोधशिलापथ्याकणैलाअनफेनिकैः ॥ युक्तं पलेन यष्ट्रयाच मूषान्तर्ध्यातचूर्णितम् । हन्ति काचार्मनक्तान्ध्यरक्तराजीः सुशीलितः ।। चूर्णो विशेषात्तिमिरं भास्करो भास्करो यथा ॥ नीले थोथेको बेरीके कोयले की अग्निपर तपा तपाकर क्रमशः बकरीके दूध, घी और शहद में बुझावें । तदनन्तर यह नीलाथोथा १० तोले, स्वर्णमाक्षिक भस्म तथा मिरच, स्रोतोञ्जन (सुरमा), कुटकी, तगर, सेंधानमक, लोध, कपूर, हर्र, पीपल, इलायची, रसौत और समुद्रफेनका चूर्ण १। - १। तोला तथा मुलैठीका चूर्ण ५ तोले लेकर सबको एकत्र मिलाकर शरावसम्पुट में बन्दकरके भस्म करें और फिर अत्यन्त बारीक पीसकर सुरक्षित रक्खें । इसे आंखांमें लगानेसे काच, अर्म, नक्तान्ध्य (राधा) आंख की लाल रेखाएं और विशेषतः तिमिर नष्ट होता है । For Private And Personal Use Only
SR No.020116
Book TitleBharat Bhaishajya Ratnakar Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNagindas Chaganlal Shah, Gopinath Gupt, Nivaranchandra Bhattacharya
PublisherUnza Aayurvedik Pharmacy
Publication Year1928
Total Pages773
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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