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घृतप्रकरणम् ]
एकत्र मिलाकर पकावें । जब घृत मात्र शेष रह जाय तो उसे छान 1
तृतीयो भागः ।
दूध । )
(३०४०) दशमूलघृतम् (२)
यह घृत वातज तिमिर को नष्ट करता है । ( मात्रा – १ से २ तोले तक । अनुपान
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( वृं. मा.; च. द. । वातव्या . ) दशमूलस्य निर्यूहे जीवनीयैः पलोन्मितैः । क्षीरेण च घृतं पक्वं तर्पणं पवनार्त्तिजित् ॥
दशमूलका काथ २४ सेर, दूध ६ सेर, घी ६ सेर तथा जीवनीयगण ( मुद्गपर्णी, माषपर्णी, जीवन्ती, मुलैठी, जीवक, ऋषभक, मेदा, महामेदा, काकोली, क्षीरकाकोली, ऋद्धि और वृद्धि ) का कल्क १२ पल ( प्रत्येक ५ तोले) लेकर सबको एकत्र मिलाकर पकावें । जब घी मात्र शेष रह जाय तो उसे छान लें।
यह घृत वातव्याधि नाशक है ।
( मात्रा --- १ से २ तोले तक । अनुपान गरम दूध या दशमूलका काथ | )
[ ५३ ]
| करअं वारुणं मूलं पिप्पली च समं समम् । मतिदशपलं योज्यं कुलत्यबदरीयवाः || प्रत्येकं षोडशपलं सर्वमेकत्र पाचयेत् । तेषामष्टगुणे तोये पादशेषं समाहरेत् ॥ वस्त्रपूतं कषायन्तं पुनः पाच्यमिमैः सह । चव्यं द्विपिप्पली भार्गी वचा त्रिद्विकम् ॥ atri कम्पिल्वकम् शुण्ठी प्रत्येकं पळसम्मितम् । चूर्णितं योजयेत्तत्र घृतप्रस्थयुतं पचेत् ॥ घृतावशेषतार्य कर्षमात्रं प्रयोजयेत् । मेोपद्रवाणाञ्च शमनं पवनं हितम् ॥ fushraणगण्डानां सर्वोपद्रवशान्तिकृत् ॥
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काथ- दशमूलकी हरेक वस्तु, राठी ( कचूर), दन्तीमूल, देवदार, पुनर्नवा (साठी), स्नुही (सेंड) और आककी जड़, हर्र, ज़िमिकन्द (शूरण), पोखर - मूल, करञ्ज, बरनेकी छाल, और पीपल; प्रत्येक १० पल (५० तोले ) तथा बेर, कुलथी और जौ १६- १६ पल लेकर सबको अधकुटा करके १६ गुने पानी में पकावें; जब चौथा भाग पानी शेष रह जाय तो काथको छानलें ।
नोट- मेदा, महामेदाके अभाव में शतावर; जीवक, ऋषभक के अभाव में विदारीकंद, ऋद्धि, वृद्धि के अभाव में बाराहीकन्द और काकोली, क्षीर काकोलीके अभावमें असगंध लेना चाहिये । (३०४१) दशमूलघृतम् (३)
( र. र. । मेह; वा. भ. । चि. अ. १२ ) 'दशमूली शठो. दन्ती देवदारु पुनर्नवा | मूकं स्मुक्लर्कयोः पथ्या भूकन्दञ्च सपुष्करम् | तो घीको छान लें।
कल्क—चव, पीपल, गजपीपल, भरंगी, बच, निसोत, बायबिडंग, लोध, कबीला और सोंठ; हरेक ५-५ तोले लेकर पानीके साथ पीस लें ।
२ सेर घी तथा उपरोक्त काथ और कल्क को एकत्र मिलाकर पकायें; जब काथ जल जाय
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