SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 65
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir [५४] भारत-भैषज्य-रत्नाकरः। [दकारादि यह घृत प्रमेहपिडिका, गण्ड और घाव आदि । चीता, सेठ और यवक्षार का कल्क ६ पल (हरेक प्रमेहके समस्त उपद्रवोंको नष्ट करता है। ५ तोले) लेकर सबको एकत्र मिलाकर पकावें । ___ मात्रा--१। तोला । (त्रिफला काथ या मलि- | जब काथ जल जाय तो घी को छान लें। ष्ठादि काथ में डालकर पियें।) यह घी खांसी, पसलीका दर्द, हिचकी और (३०४२) दशमूलषट्रपलघृतम् (१) । श्वास को नष्ट करता है। (वृ. मा. । उदरा.) (मात्रा-१ से २ तोले तक । अनुपान-दूध पिप्पलीपिप्पलीमूलचव्यचित्रकनागरैः। | या गर्म जल या दशमूलका काथ।) सक्षारैरपलिकै द्विः प्रस्थं सर्पिषः पचेत् ॥ नोट-प्रयोग संख्या ३०३८, ३०४२ और कल्कैपिञ्चमूलस्य तुलार्धस्य रसेन तु । | ३०४३ में बहुत थोड़ा अन्तर है । नं. ३०३८ दधिमण्डाढकं दत्त्वा तत्सर्जिठरापहम् ॥ | में दूध पड़ता है, नं. ३०४२ में दहीका पानी और श्वयधुं वातविष्टम्भं गुल्माशीसि च नाशयेत् ॥ नं. ३०४३ में केवल काथ ही पड़ता है। ओष पीपल, पीपलामूल, चव, चीता, सांठ और धियोंके परिमाणमें भी अन्तर है। यवक्षारका कल्क ३ पल ( हंग्क २।। तोले ), घो। (३०४४) दशमूलादिघृतम् (१) २ प्रस्थ. ( ४ सेर ), दशमूलका काथ ६। सेर, । (वृ. नि. र; यो. र. । अजी.) और दहीका पानी ८ सेर लेकर सबको एकत्र मिला- मरीचं पिप्पलीमूलं नागरं पिप्पली तथा । कर पकार्वे । जब काथ और पानी जल जाय तो । भल्लातकं यवानी च विडङ्ग गजपिप्पली ॥ घीको छान लें। हिङ्गसौवर्चलं चैव त्वजानी विडधान्यकम् । इसके सेवनसे उदरव्याधि, सूजन, अपान सामुद्रं सैन्धवं क्षारं चित्रकं वचया सह ॥ वायुका रुकना, गुल्म और बवासीरका नाश होता है। एभिरर्धपलैर्भागैर्वृतप्रस्थं विपाचयेत् । (मात्रा-१ से २ तोले तक। अनुपान पीप- | दशमूलरसे सिद्ध पयसाष्टगुणेन वा ॥ लका काथ या गर्म जल । ) मन्दाग्नेश्च हितं सिद्धं ग्रहणीदोषनाशनम् । (३०४३) दशमूलषट्पलघृतम् (२) विष्टम्भमामं दौर्बल्यं प्लीहानमपकर्षयेत् ॥ (द्वं. मा.; च. द. । कास. चि.) कासं श्वासं क्षयं वापि दुर्नामसभगन्दरम् । दशमूलीचतुप्पस्थे रसे प्रस्थोन्मितं हविः। कफजान्हन्ति रोगांश्च वायुजान्कृमिसम्भवान॥ सक्षारैः पश्चकोलैस्तु कल्कितं साधुसाधितम् ॥ तान्सर्वान्नाशयत्याशु शुष्कं दार्वनको यथा ॥ कासहपाचशूलनं हिकावासनिबर्षणम् । कल्क-कालीमिर्च, पीपलामूल, सोंठ, पीपल, कल्क षट्पलमेवात्र ग्राहयन्ति भिषग्वराः ॥ शुद्ध भिलावा, अजवायन, बायबिडंग, गजपीपल. दशमूलका क्वाथ ? प्रस्थ ( ८ सेर ), घी १ । हींग, सश्चल ( काला नमक), जीरा, बिड लवण, प्रस्थ । २ सेर) तथा पीपल, पीपलामूल, चव, ' धनिया, समुद्रनमक, सेंधानमक, यवक्षार, चीता For Private And Personal Use Only
SR No.020116
Book TitleBharat Bhaishajya Ratnakar Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNagindas Chaganlal Shah, Gopinath Gupt, Nivaranchandra Bhattacharya
PublisherUnza Aayurvedik Pharmacy
Publication Year1928
Total Pages773
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy