SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 639
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org त-भैषज्य रत्नाकरः [ ६४४ ] होंग, जवाखार, बिडलवण, राठी ( कचूर), चीतामूल मुलैठी और रास्ना ११-११ तोला लेकर सबको पीस लें। भारत विधि - २ सेर घी, २ सेर दूध तथा उपरोक्त काथ और कल्क एकत्र मिलाकर पकावें । जब घृतमात्र शेष रह जाय तो उसे छान ले 1 यह घृत कफज गुल्म, प्लीहा, पाण्डु, श्वास, ग्रहणी और खांसीको नष्ट करता है । (४८७४) भल्लातकाद्यं घृतम् ( व. से. । वातत्र्याध्य.) भल्लातकानि सिन्धूत्थमधूच्छिष्टमहौषधम् । अम्लेन पयसा वाऽपि घृतमेतद्विपाचयेत् ॥ एतेनोद्ववर्त्तनं कार्यं प्रदेहश्चैव शाम्यति । अतिप्रवृद्धां खल्लीं तु तत्क्षणादेव नाशयेत् ॥ भिलावा, सेंधानमक, मोम और साठ १०-१० तोले लेकर मोमके सिवाय अन्य तीनों ओषधियों को पीस लें । तदनन्तर ४ सेर घीमें मोम और यह चूर्ण तथा १६ सेर का अथवा दूध मिलाकर पकावें । जब घृतमात्र शेष रह जाय तो उसे छान लें। इसकी मालिश करनेसे खल्ली शूल (बांयटे) का नाश होता है । Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir [ भकारादि सचः शमं नयति ये च कफानिलोत्त्या भाख्यषट्पलमिदं प्रवदन्ति सज्ञाः ॥ कल्क -- पौपल, पीपलामूल, चव, सेठ, चीता और जवाखार ५-५ तोले लेकर पीस लें 1 काथ -- दशमूल की प्रत्येक वस्तु, अरण्डमूल और भारंगी समान भाग- मिश्रित १॥ सेर लेकर को अकुटा करके १२ सेर पानीमें पकावें और ३ सेर पानी शेष रहने पर छान लें 1 विधि -- २ सेर धी, उपरोक्त कल्क तथा काथ और २ सेर दूध तथा ३ सेर दही एकत्र मिलाकर पका और कृतमात्र शेष रहने पर छान लें । यह घृत गुल्म, उदररोग, अरुचि, भगन्दर, अग्रिम, खांसी, ज्वर, क्षय, शिरोरोग, ग्रहणीविकार और वातकफज रोगोंको नष्ट करता है । (४८७६) भाग्यदिनृतम् (व. से. 1 कासा. ) भाङ्गकल्कैर्धृतश्चाथ पचेद्दध्नि चतुर्गुणे । भाङ्गरसं द्विगुणितं वातकासहरं परम् ॥ भरंगीका काथ ८ सेर, घी ४ सेर, दही १६ सेर और भरंगीका कल्क आधा सेर लेकर सबको एकत्र मिलाकर पकायें । जब घृतमात्र शेष रह जाय तो छान लें। इसे सेवन करने से वातज खांसी नष्ट होती है। (४८७७) भास्करांचं घृतम् ( व. से. । नेत्ररोगा. ) 1 1 (४८७५) भार्गीषट्पलकं घृतम् (च. द. । गुल्मा. २९; व. से. । गुल्मरोगा.) षड्भिः पलैर्मगधजाफलमूलचन्यविश्वौषधज्वलनयावजकल्कपकम् । प्रस्थं घृतस्य दशमूल्युरुबूकभाङ्ग कृष्णा सशर्करा द्राक्षा चतुर्मधुकयष्टिका । hrescort पयसि दनि च षट्पलाख्यम् ।। एकद्वित्रिचतुर्गुणाभागाः सर्वेषु कल्पिताः । गुल्मोदरारुचिभगन्दर वहिसादकासवरक्षयशिरोग्रहणी विकारान् । मिना पचेद्धीमान्बहुदर्व्या विघट्टयन् । भास्कराख्यमिदं सर्पिर्ब्रह्मणा निर्मितं पुरा ॥ For Private And Personal Use Only
SR No.020116
Book TitleBharat Bhaishajya Ratnakar Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNagindas Chaganlal Shah, Gopinath Gupt, Nivaranchandra Bhattacharya
PublisherUnza Aayurvedik Pharmacy
Publication Year1928
Total Pages773
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy