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घृतपकरणम् ]
तृतायो भागः
[६४३]
और काला जीरा १-१॥ तोला लेकर सबको | कल्क-६ तोले ८ माशे भिलावेको पीस पीस लें।
कर बारीक कर लें। विधि-२ सेर घीमें उपरोक्त काथ तथा विधि-१ सेर घीमें काथ और कल्क मिलाकल्क मिलाकर काथ जलने तक पकावें और | कर काथ जलने तक पकाकर छान लें। फिर छान लें।
इसमें चौथाई भाग खांड मिलाकर पीनेसे रक्त यह घृत सूतिकारोग, ग्रहणी, पाण्डु और गुल्म और शहद मिलाकर पीनेसे कफज गुल्म नष्ट अनेक प्रकारके अर्श रोगको शीघ्र ही नष्ट कर देता | होता है। है । अग्निकी वृद्धि और स्त्रीके दूधको शुद्ध करता है। (४८७३) भल्लातकघृतम् (३) (४८७१) भल्लातकघृतम् (१)
(च. सं. । चि. अ. ५ गुल्म; वा. भ. । चि. (सुश्रुत संहिता । चि. अ. ९)
अ. १४; च. द. । गुल्मा.; ग. नि. । घृता.; भल्लातकाभयाविडङ्गसिद्धं वा सर्वेषाम् ।।
वं. से. । गुल्मा.) भिलावा, हर्र और बायबिडंगके काथ तथा भल्लातकानां द्विपलं पञ्चमूलं पलोन्मितम् । कल्कसे सिद्ध घृत समस्त प्रकारके कुष्ठोंको नष्ट | साध्यं विदारीगन्धाधमापोथ्य सलिलाढके । करता है।
पादावशेषे पूते च पिप्पली नागरं वचाम् । (काथके लिये हरेक वस्तु २७ तोले लेकर विडङ्गं सैन्धवं हिहुं यावशूकं बिडं शठीम् ।। ८ सेर पानीमें पका और २ सेर पानी शेष रहने चित्रकं मधुकं रास्नां पिष्ट्वाकर्षसमान्भिषक् । पर छान लें।
प्रस्थं च पयसो दत्त्वा घृतपस्थं विपाचयेत् ॥ कल्क के लिये हरेक वस्तु १ तोला १ माशा एतद्भल्लातकं नाम कफगुल्महरं परम् । लेकर पीस लें । धी आधासेर । )
प्लीहपाण्ड्वामयश्वासग्रहणीकासगुल्मनुत् ॥ (४८७२) भल्लातकघृतम् (२)
काथ--भिलावे १० तोले, शालपर्णी, पृष्ट (र. र. । गुल्मा.)
पर्णी, कटेली, कटेला, गोखरु, शालपर्णी, विदारीभल्लातकान् कल्ककषायपर्क
कन्द, बला, नागबला, गोखरु, मूर्वा, सतावर, सारिवा, सर्पिः पिबेच्छरया विमिश्रम् ।। काली सारिवा, जीवक, ऋषभक, मुद्गपर्णी,माषपर्णी, तद्रक्तगुल्मं विनिहन्ति पीतं
छोटी कटेली,बड़ी कटेली,पुनर्नवा,अरण्डमूल, हंसपदी, बलासगुल्मं मधुना समेतम् ॥ वृश्चिकाली और कांचकी जड़ ५-५ तोले लेकर काथ-२ सेर भिलावेको कूटकर १६ सेर | सबको ८ सेर पानीमें पकावें और २ सेर पानी पानीमें पकावें और जब ४ सेर पानी शेष रह जाय शेष रहने पर छान लें । तो छान लें।
कल्क--पीपल, सांठ, बच, बायबिडंग, सेंधा,
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