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[६४२]
भारत-भैषज्य-रत्नाकरः
[भकारादि
अथ भकारादिघृतप्रकरणम् ।
(४८६९) भद्रावहघृतम्
विधि-१ सेर घीमें उपरोक्त काथ और (भा. प्र. म. ख.; व. से. । मूत्राधाताद्य.) कल्क मिलाकर पकावें । जब धृतमात्र शेष रह जाय अम्बष्ठा पाटला चैव वर्षाभूद्वयमेव च । तो छान लें। विदारीकन्दकाशश्च कुशमोरटगोक्षुराः॥
यह घृत उष्णवात ( सोजाक ) को नष्ट पाषाणभेदो वाराही शालिमूलं शरस्तथा। करता है। . भल्लातकं शिरीषस्य मूलमेषामथाहरेत् ॥ (४८७०) भद्रोत्कटाचं घृतम् समभागानि सर्वाणि काथयित्वा विचक्षणः । (भै. र. । स्त्रीरोगा.; र. र. । प्रसूति.; व. पादशेषकषायेण घृतपस्थं विपापयेत् ॥ .
से. । स्त्रीरोगा.) कल्क दत्त्वाऽथ मातमान्गिारज मधुक तथा। । समूलपत्रशाखन्तु शतं भद्रात्कटस्य च । नीलोत्पलञ्च काकोली बीजं त्रापुसमेव च ॥ वारिद्रोणेन संसाध्यं स्थाप्यं पादावशेषितम् ॥ कूष्माण्डश्च तथैर्वारुसम्भवञ्च समं भवेत् । | घृतप्रस्थं विपक्तव्यं गर्भ दत्त्वा तु कार्षिकम् । उष्णवातं निहन्त्येतद् घृतं भद्रावहं स्मृतम् ॥ | सव्योष पिप्पलीमूलं चित्रकं जीरकं तथा ॥
काथ-पाठा, पाढल, सफेद और लाल | पञ्चमूलं कनिष्ठश्च रास्नैरण्डसमन्वितम् । पुनर्नवा, बिदारीकन्द, कासकी जड़, कुशकी | बला सिन्धु यवक्षारं सर्जिका कृष्णजीरकम् ।। जड़, ईखकी जड़, गोखरु, पखानभेद, बाराही- सिद्धमेतद् घृतं सद्यो निहन्यात्सूतिकामयान् । कन्द, शालि धानकी जड़, रामशरको जड़, ग्रहणों पाण्डुरोगश्च अर्शीसि विविधानि च।। भिलावा और सिरसकी जड़की छाल समान | अग्निश्च कुरुते दीप्तं स्त्रीणां स्तन्यविशोधनम् ।। भाग-मिश्रित २ सेर लेकर सबको अधकुटा करके काथ--मूल, पत्र और शाखा सहित प्रसा१६ सेर पानीमें पकावें और ४ सेर पानी शेष रणी (खौंप ) ६। सेर लेकर उसे अधकुटा करके रहने पर छान लें।
३२ सेर पानीमें पकावें और ८ सेर पानी शेष कल्क--शिलाजीत, मुलैठी, नील कमल, रहने पर छान लें। काकोली, खीरेके बीज, पेठेके बीज और ककड़ीके कल्क---सेट, मिर्च, पीपल, पीपलामूल, चीता, बीज समानभाग मिश्रित ६ तोले ८ माशे लेकर | जीरा, शालपर्णी, पृष्टपर्णी, कटेली, कटेला, गोखरु, पीस लें।
रास्ना, अरण्डमूल, खरैटी, सेंधा, जवाखार, सन्जी
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