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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हमकरणम् ] सृतीयो भागः [६४१] - (४८६७) भृगुहरीतकी । अवलेह तैयार हो जाय तो उसे अग्निसे नीचे उतार ( भा. प्र. । म. ख. कासा.) | लें और ठण्डा होनेपर उसमें सेांठ, मिर्च, पीपल, समूलवल्कच्छदकण्टकार्या दालचीनी, इलायची तेजपात और नागकेसरका __ स्तुलां ततो द्रोणमितं जलश्च । ५-५ तोले चूर्ण एवं ६० तोले शहद मिलाकर हरीतकीनां शतमेकपात्रे सुरक्षित रक्खें। इसे अग्निबलोचित मात्रानुसार सेवन करनेसे विपाच्य कुर्याञ्चरणाम्बुशेषम् ॥ वातज, पित्तज, कफज, द्विदोषज, सन्निपातज, तस्मिन्कषाये तनुवस्त्रपूते क्षतज और क्षयज खांसी तथा श्वास, पीनस और हरीतकीमिः सहितं गुडस्य । एकादश रूप राजयक्ष्माका नाश होता है । तुलां विनिःक्षिप्य पचेत्सुपक (४८६८) भोजनान्तेऽवलेहः मेतत्समुत्तार्य सुशीतलश्च ॥ (रसायनसार ) पलं पलञ्चापि कटुत्रयञ्च कटुत्रयोमाः सुरसेन्द्रपुष्पं तथा चतुर्जातपलं विचूर्ण्य । जीरद्वयं वाहि अकल्लकश्च । पलानि षट्पुष्परसस्य चापि समाः समे स्तः पटूनी सिता च विनिःक्षिपेत्तत्र विमिश्रयेच्च ॥ रसाधिका द्वीपभवाऽऽकश्च ।। प्रयुज्यमानो विधिनैष लेहो निमज्जनाई खलु निम्बुनीरं यथावलश्चापि यथानलन । निधाय पात्रे समुपेक्ष्य पक्षम् । वातात्मकं पित्तकृतं कफोत्थं सेव्योऽवलेहो यदि भोजनान्ते द्विदोपजातान्यपि च त्रिदोपम् ॥ मुक्तिरामेति यथाऽन्नकालम् ॥ क्षतोद्भवच क्षयजञ्च कासं __ सेट, मिर्च, पीपल, अजवायन, लांग, भुने श्वासश्च हन्यात्सहपीनसेन । हुवे दोनों जीरे, भुनी हुई हींग और अकरकरा यक्ष्माणमेकादशरूपमुग्रं १-१ भाग, सेंधा नमक और काला नमक तथा हरीतकी या भृगुणोपदिष्टा ॥ मिश्री ९-९ भाग लेकर चूर्ण बनावें और फिर ६। सेर कटेलीका पञ्चाङ्ग और १०० नग उसे एक कांचके पात्रमें डालदें तथा उसमें ९-९ हर्र लेकर हर्रोको कपड़ेकी पोटलीमें बांध लें और भाग किसमिस, छुहारा और अदरकके टुकड़े डालकर पात्र में इतना नीबूका रस भर दं कि कटेलीको अधकुटा कर ले । तत्पश्चात् दोनोंको जिसमें सब चीजें डूब जायं। तदनन्तर पात्रका मुख ३२ सेर पानीमें एकत्र पकावे और ८ सेर पानी बन्द करके रख दें। १५ दिन बाद चटनी तैयार शेष रहने पर क्वाथको छान लें । तथा हर्रोको हो जायगी। अलग निकाल लें । तदनन्तर उस काथमें वे हर इसे भोजनके बादमें खानेसे भोजन अच्छी और ६। सेर गुड़ मिलाकर पुनः पकावें । जब तरह और समय पर पच जाता है । इति भकारादिलेहप्रकरणम् । For Private And Personal Use Only
SR No.020116
Book TitleBharat Bhaishajya Ratnakar Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNagindas Chaganlal Shah, Gopinath Gupt, Nivaranchandra Bhattacharya
PublisherUnza Aayurvedik Pharmacy
Publication Year1928
Total Pages773
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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