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घृतप्रकरणम् ]
तृतीयो भागः ।
[ ६४५ ]
तिमिरं शुक्तिकं हन्ति पिल्लं वाऽध्युषितानि च । | मुठी, खरैटी, मजीठ, इलायची, मनसिल, पद्माक, refष्टं मन्ददृष्टिञ्च दिवानक्तान्ध्यमेव च ॥ अस्योपयोगादत्यन्तं संहारादति वर्त्तयेत् । वयस्तम्भनमायुष्यं वलीपलितनाशनम् ॥ मदरश्च क्षयं श्वासं शुक्रमूत्रमलार्तिनुत् ॥
तगर, महुवेका सार, कंगनी, हल्दी, अतीस, रसौत, शिलाजीत, चव और कूठ के कल्क तथा दही और आठ प्रकारके मूत्रके साथ ताजा घृत सिद्ध करें ।
इसे पीनेसे ग्रहोन्माद नष्ट होता है ।
पीपल १ भाग, खांड २ भाग, मुनका ३ भाग और मुलैठी ४ भाग लेकर सबका चूर्ण करके ८ गुने धीमें मिलायें और उसमें धीसे ४ गुना पानी मिलाकर मन्दाग्निपर पकायें । जब पानी जल जाय तो घीको छान लें।
यह घृत तिमिर, शुक्तिक, पिल्ल, अम्लाध्युषित, अदृष्टि, मन्ददृष्टि, दिवान्ध्यता और रतौधा आदि समस्त नेत्ररोगोंको नष्ट करता है ।
इसके सेवन से आयु स्थिर होती और बढ़ती है तथा बलि पलित, प्रदर, क्षय, श्वास, मूत्ररोग, शुक्ररोग और मल सम्बन्धी रोग नष्ट होते हैं । (४८७८) भूतरावघृतम् (१)
( वा. भ. । उ. अ. ५; ग. नि. । उन्मादा. )
त्रिकटुकदलकुङ्कुमग्रन्थिकक्षारसिंही नि - शादारुसिद्धार्थयुग्माम्बुशुक्राव्ययैः । सितलशुनफुलत्रयोशीरतिक्तावचातुत्थयष्टीबलालोहि
तैलशिलापद्मकैः दधितगरमधूकसारमियाहानिशाख्याविपाताक्ष्यशैलैः सचव्यामयैः । कल्कितैर्धृतमभिनवमशेषमूत्रांशसिद्धं मतं भूतरावाहयं पानतस्तद्ग्रहघ्नं परम् ॥
सोंठ, मिर्च, पीपल, तेजपात, केसर, पीपला मूल, जवाखार, कटेली, हल्दी, देवदारु, दो प्रकार की सरसों, सुगन्धवाला, इन्द्रजौ, सफेद ल्हसन, हर्र, बहेड़ा, आमला, खस, कुटकी, बच, नीलाथोथा,
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( कल्क - - समान भाग मिश्रित आधासेर, घी ४ सेर, दही ८ सेर और आठ मूत्र-गोमूत्र, बकरीका मूत्र, भेड़का मूत्र, भैंसका मूत्र, घोड़ीका मूत्र, हथिनीका मूत्र ऊंटनीका मूत्र और गधीका मूत्र समानभाग मिश्रित ४ सेर | ) (४८७९) भूतरावघृतम् (२) (महा) ( वा. भ. । उ. अ. ५; ग. नि. | उन्मादा. )
नतमधुकरञ्जलाक्षापटोलीसमङ्गावचापाटलीहिङ्गुसिद्धार्थसिंहीनिशायुग्लतारोहिणीबदरकटुफलत्रिकाकाण्डदारुकृमिघ्नाजगन्धामराङ्कोलुकोशातकीशिग्रनिम्बाम्बुदेन्द्राहयैः । गदशुकतरु पुष्पबीजोग्रयष्टयद्विकर्णीनिकुम्भानिवित्यैः स मैः । कल्कितैर्मूत्रवर्गेण सिद्धं घृतम् । विधिविनिहितमाशु सर्वैः क्रमै योजितं हन्ति सर्वग्रहोन्मादकुष्ठज्वरांस्तन्महाभूतरावं स्मृतम् ।
कूठ, मुलैठी, करञ्ज, लाख, पटोल, मजीठ, बच, पाढल, हींग, सरसो, कटेली, हल्दी, दारूहल्दी, मालनी, हर्र, बेर, कुटकी, हर्र, बहेड़ा, आमला, थूहर,देवदारु,बायबिडुंग,तुलसी, गिलोय, अंकोल, तोरी, सहजनेकी छाल, नीमकी छाल, नागरमोथा, इन्द्रजौ, कूठ, सिरसके फूल और बीज, बछनाग, मुलैठी, कोयल, दन्तीमूल, चीता और बेलकी छालका समान भाग मिश्रित कल्क आधासेर तथा घी ४ सेर और समानभाग
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