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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir रसमकरणम् ] तृतीयो भागः। [६०१] यावन्त्येतानि चूर्णानि मण्डूरं द्विगुणं ततः। इनके सेवनसे बहुमूत्ररोग नष्ट होता है । गोमूत्रे त्रिफलाकाथे निषिक्तं लक्ष्णचूर्णितम् ।। ( मात्रा--१॥ माशा।) एतबलादिकं नाम मण्डूरं हन्ति दुस्तरम् । (४७३६) बहुमूत्रान्तको रसः (२) अम्लपित्तं सुदुर शूलं ती नियच्छति ॥ (र. चं. । प्रमेहा.) खरैटी, शतावर, जौ और अरण्डकी जड़का चूर्ण तथा गुड़ १०-१० तोले लेकर सबको चार सिन्दूरं च तथा लौहं वाहिफेनसारको । गुने पानीमें पकावें । जब अवलेहके समान गाढ़ा उदुम्बरभवं बीजं बिल्वमूलं सुरमिया॥ हो जाय तो उसमें ५--५ तोले जीरे और पीपल | सर्व समं जन्तुफलरसैः सम्मर्दितं भवेत् । का चूर्ण तथा साढ़े सात सात माशे दालचीनी, | रक्तिद्वयमितां खादेद्वटिकामनुपानतः ।। इलायची, तेजपात और नागकेसरका चूर्ण एवं औदुम्बरफलद्रावं दद्यान्मेहप्रशान्तये । २५ तोले, गोमूत्र और त्रिफलाके काथमें बुझा | बहुमूत्रं तथा चान्याव्रोगांश्चैव तदुद्भवान् । बुझाकर भस्म किया हुवा मण्डूर मिला कर अच्छी बहुमूत्रान्तकरसो नाशयेदविकल्पतः । तृष्णाधिक्ये प्रदातव्यं शृतशीतमिदं शुभम् ॥ तरह घोटकर सुरक्षित रखें । यह मण्डूर असाध्य अम्लपित्त और तीन सारिवा मधुकं द्राक्षा दर्भः सरलचन्दने। शूलको नष्ट करता है। पथ्या मधूकपुष्पश्च सर्वञ्च समभागिकम् ॥ जले संस्थाप्य रजनी पराहणे वस्त्रगालितम् । (मात्रा-१ माशा) प्रोक्तो गहननाथेन सद्यस्तृष्णाहरः परः ॥ (४७३५) बहुमूत्रान्तको रसः (१) (सि. भे. म. मा. । प्रमेहचिकि.) । रससिन्दूर, लोहभस्म, बङ्गभस्म, शुद्ध अफीम, बीजबन्धेक्षुरक्लीतवांशीसिहलकसालिमम् । शुद्ध जमाल गोटा, गूलरके बीज, बेलकी जड़की शुक्तिविद्रमयोर्भूती मज्जानावक्षपथ्ययोः ।। छाल और तुलसी समान भाग लेकर सबका महीन शिलाजतु श्रुटिर्वगः सर्व सञ्चूर्ण्य माक्षिकैः । | चूर्ण बनाकर उसे गूलरके फले के रसमें अच्छी वटीबंधान सुखदा बहुमूत्रप्रमेहिणाम् ॥ तरह घोटकर २-२ रत्तीकी गोलियां बना लें। बीजबन्द, तालमखाना, मुलैठीका सत, बंस इनके सेवनसे बहुमूत्र और उसके उपद्रव लोचन, सतबिरोजा, सालममिश्री, सीपकी भस्म, | अवश्य नष्ट हो जाते हैं। अनुपान-गूलरके फलों मूंगाभस्म, बहेड़े और हर्रकी गुठलीकी मज्जा का रस । ( मींगी ). शिलाजीत, छोटी इलायचीके बीज यदि प्यास अधिक लगे तो सारिवा मुलैठी, तथा बङ्गभस्म समान भाग लेकर सबका महीन | मुनक्का, दर्भ, चीरका बुरादा, लालचन्दन, हरे और चूर्ण करके उसे शहदमें धोटकर गोलियां महुवेके फूल समान भाग लेकर काढ़ा बनाकर बना लें। ठण्डा करके पिलाना चाहिये । अथवा इन चीजों For Private And Personal Use Only
SR No.020116
Book TitleBharat Bhaishajya Ratnakar Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNagindas Chaganlal Shah, Gopinath Gupt, Nivaranchandra Bhattacharya
PublisherUnza Aayurvedik Pharmacy
Publication Year1928
Total Pages773
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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