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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir [६०२] . भारत-भैषज्य-रत्नाकरः। [बकारादि को रातको पानीमें भिगो दें और प्रातःकाल छान- (४७३९) बाकुच्यादिलोहम् कर पिलावें । (ग. नि. । रसायना.) (४७३७) बहुमूत्रान्तकलोहम् बाकुची त्रिफला कृष्णा विडङ्ग सुरसाऽमृता । अयोमधुस्थितं पक्कं जरामृत्युविषापहम् ॥ ( आ. वे. वि. । बहुमूत्रा. अ. ६७) बाबची, हर्र, बहेड़ा, आमला, पीपल, बायरसं गन्धमयोऽभ्रश्च वङ्गं सर्वं समं समम् ।। | बिड्ग, तुलसी, गिलोय और लोहभस्म समान भाग रसस्य पादिकं हेम रम्भापुष्परसेन च ॥ लेकर चूर्ण बनावें। मईयित्वा वटी कार्या चणकामाऽनुपानतः। इसे शहदके साथ सेवन करनेसे जरा, मृत्यु रसो गुडूच्या दातव्यो बहुमूत्रान्तकाभिधः ॥ | और विषका नाश होता है । (४७४०) बाकुच्याचं चूर्णम् शुद्ध पाग, शुद्र गन्धक, लोहभस्म, अभ्रक (ग. नि. चूर्णा. ) भरम और बङ्गभ म ४-४ भागं तथा स्वर्णभस्म १ भाग लेकर प्रथम पारे गन्धकको कञ्जली पलानि संगृह्य दशेन्दुराज्या बनावें और फिर उसमें अन्य ओषधियां मिलाकर फलत्रयस्यापि समानमेतत् । विडड्गसारस्य पलानि सप्त सबको केलेके फूलके रसमें घोटकर चनेके बराबर शिलाजतोऽर्धं च पुरस्य चकम् ।। गोलियां बना लें । इन्हें गिलोयके रसके साथ सेवन करनेसे बहुमूत्र रोग नष्ट होता है। शतं च भल्लातकसत्फलानां पलं तथा पुष्करमूलनाम्नः। (४७३८) बाकुच्यादिलेहः | पलत्रय लोहभवं सुचूर्ण (ग. नि. । कुष्ठा. २६) तुरी पलार्ध ह्यथ कर्षभागाः ॥ शशाङ्कलेखा सविडङ्गसारा सपत्रमुस्ताकणयष्टिकानां सपिप्पलीका सहुताशमूला। सचित्रकग्रन्थिककेशराणाम् । सायोमला सामलका सतैला न्यग्रोधमूलोषणकुङ्कुमाना मेकत्र सञ्चूये समं तु खण्डम् ॥ कुष्ठानि सर्वाणि निहन्ति लीढा ॥ | खादेद्यथाग्नि प्रयतस्तु मात्रां । बाबची, बायबिडंगकी गिरी (चावल-मींग), कुष्ठान्यशेषाण्यपयान्ति नाशम् । पीपल, चीतेकी जड़की छाल और मण्डूरभस्म तथा | अर्थोविकाराः षडपि प्रवृद्धाः आमला १-१ भाग लेकर बारीक चूर्ण बनाकर | वित्राणि चित्राण्युदराणि चाष्टौ ॥ उसमें १ भाग तिलका तेल मिलाकर रक्खें । क्षयाश्च कृच्छ्रः खलु पाण्डुरोगः इसे सेवन करनेसे समस्त कुष्ठ नष्ट होते हैं।। कण्ठामया विशतिरेव मेहाः। For Private And Personal Use Only
SR No.020116
Book TitleBharat Bhaishajya Ratnakar Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNagindas Chaganlal Shah, Gopinath Gupt, Nivaranchandra Bhattacharya
PublisherUnza Aayurvedik Pharmacy
Publication Year1928
Total Pages773
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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