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[६०२]
. भारत-भैषज्य-रत्नाकरः।
[बकारादि
को रातको पानीमें भिगो दें और प्रातःकाल छान- (४७३९) बाकुच्यादिलोहम् कर पिलावें ।
(ग. नि. । रसायना.) (४७३७) बहुमूत्रान्तकलोहम्
बाकुची त्रिफला कृष्णा विडङ्ग सुरसाऽमृता ।
अयोमधुस्थितं पक्कं जरामृत्युविषापहम् ॥ ( आ. वे. वि. । बहुमूत्रा. अ. ६७)
बाबची, हर्र, बहेड़ा, आमला, पीपल, बायरसं गन्धमयोऽभ्रश्च वङ्गं सर्वं समं समम् ।।
| बिड्ग, तुलसी, गिलोय और लोहभस्म समान भाग रसस्य पादिकं हेम रम्भापुष्परसेन च ॥ लेकर चूर्ण बनावें। मईयित्वा वटी कार्या चणकामाऽनुपानतः।
इसे शहदके साथ सेवन करनेसे जरा, मृत्यु रसो गुडूच्या दातव्यो बहुमूत्रान्तकाभिधः ॥
| और विषका नाश होता है ।
(४७४०) बाकुच्याचं चूर्णम् शुद्ध पाग, शुद्र गन्धक, लोहभस्म, अभ्रक
(ग. नि. चूर्णा. ) भरम और बङ्गभ म ४-४ भागं तथा स्वर्णभस्म १ भाग लेकर प्रथम पारे गन्धकको कञ्जली
पलानि संगृह्य दशेन्दुराज्या बनावें और फिर उसमें अन्य ओषधियां मिलाकर
फलत्रयस्यापि समानमेतत् ।
विडड्गसारस्य पलानि सप्त सबको केलेके फूलके रसमें घोटकर चनेके बराबर
शिलाजतोऽर्धं च पुरस्य चकम् ।। गोलियां बना लें । इन्हें गिलोयके रसके साथ सेवन करनेसे बहुमूत्र रोग नष्ट होता है।
शतं च भल्लातकसत्फलानां
पलं तथा पुष्करमूलनाम्नः। (४७३८) बाकुच्यादिलेहः
| पलत्रय लोहभवं सुचूर्ण (ग. नि. । कुष्ठा. २६)
तुरी पलार्ध ह्यथ कर्षभागाः ॥ शशाङ्कलेखा सविडङ्गसारा
सपत्रमुस्ताकणयष्टिकानां सपिप्पलीका सहुताशमूला।
सचित्रकग्रन्थिककेशराणाम् । सायोमला सामलका सतैला
न्यग्रोधमूलोषणकुङ्कुमाना
मेकत्र सञ्चूये समं तु खण्डम् ॥ कुष्ठानि सर्वाणि निहन्ति लीढा ॥ | खादेद्यथाग्नि प्रयतस्तु मात्रां । बाबची, बायबिडंगकी गिरी (चावल-मींग), कुष्ठान्यशेषाण्यपयान्ति नाशम् । पीपल, चीतेकी जड़की छाल और मण्डूरभस्म तथा | अर्थोविकाराः षडपि प्रवृद्धाः आमला १-१ भाग लेकर बारीक चूर्ण बनाकर | वित्राणि चित्राण्युदराणि चाष्टौ ॥ उसमें १ भाग तिलका तेल मिलाकर रक्खें । क्षयाश्च कृच्छ्रः खलु पाण्डुरोगः
इसे सेवन करनेसे समस्त कुष्ठ नष्ट होते हैं।। कण्ठामया विशतिरेव मेहाः।
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