SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 593
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir [५९८] भारत-भैषज्य-रत्नाकरः । [वकारादि - (४७२४) बिल्वाञ्जनम् (१) । (४७२६) बिल्वादियोगः (भै. र.; च. द.; धन्व.; वृ. मा.; र. र. । नेत्ररो.) | (वा. भ. । उ. अ. ३६; धन्वः । विसू.) बिल्वपत्ररसः पूतः सन्धवाज्यसमन्वितः । | बिल्वस्य मूलं सुरसस्य पुष्पं शुल्वे वराटिकाष्टो धुपितो गोमयाग्निना ॥ फलं करञ्जस्य नतं सुराहम् । पयसालोडितश्चाक्ष्णोः पूरणाच्छोथशूलनुत् । .. फलत्रिकं व्योपनिशाद्वयं च अभिष्यन्देऽधिमन्थे च स्रावे रक्ते च शस्यते ॥ बस्तस्य मूत्रेण सुसूक्ष्मपिष्टम् ।। बेलपत्रके स्वरसको छानकर उसमें जरासा | भुजङ्गलूतोन्दुरवृश्चिकाये-- सेंधा नमक और घी मिलावें और फिर उसे ताम्र- | विचिकाजीर्णगरज्वरैश्च । पात्रमें डालकर कौड़ीसे इतना घिसें कि जिससे वह | आन्निरान्भूतविधर्षितांश्च गाढा हो जाय । फिर उसे गायके गोबरके उपलेकी स्वस्थी करोत्यञ्जनपाननस्यैः॥ अग्निसे धूपित करके रक्खें । बेलकी जड़की छाल, तुलसीकी मञ्जरी (पुष्प), इसमें गायका (या स्त्रीका) दूध मिलाकर | करञ्जके फल, तगर, देवदारु, सोंठ, मिर्च, पीपल, पतला. करके उसे आंखमें डालनेसे आंखकी सूजन, हर्र, बहेड़ा, आमला, हल्दी और दारुहल्दी का पीडा, अभिष्यन्द (आंखें दुखना ), अधिमन्थ, अत्यन्त महीन चूर्ण समान भाग लेकर सबको बकनेत्रस्राव और आंखोकी लाली आदि विकार नष्ट रेके मूत्रमें अच्छी तरह धोटकर छायामें सुखाकर होते हैं। रक्खें । नोट-वृन्द माधव में पीपल अधिक है। इसका अञ्जन लगाने, इसकी नस्य लेने और रसरत्नाकरमें गोदुग्ध के स्थान में स्त्री दुग्ध इसे पीनेसे सांप, मकड़ी, चूहे और बिच्छू आदिका लिखा है। विष तथा विसूचिका, अजीर्ण और ज्वर एवं भूत(४७२५) बिल्वाञ्जनम् (२) विकार नष्ट होते हैं। (भै. र. । नेत्र.) | (४७२७) बृहत्यादिवतिः बिल्वपत्ररसं साम्लं निघृष्टं ताम्रभाजने। (ग. नि. । नेत्ररो. ३) सिन्धुत्थकटुतैलाक्तं कुर्यानेत्र स्रावादिषु ॥ | बृहत्येरण्डमूलत्वक्छियोर्मूलं ससैन्धवम् । बेलके पत्तोंका स्वरस, कांजी और सरसेांका अजाक्षीरेण पिष्टा स्याद्वतिर्वाताक्षिरोगनुत् ।। तेल समान भाग लेकर सबको एकत्र मिला और | बड़ी कटेली, अरण्डकी जड़की छाल, सहजउसमें जरासा सेंधा नमक मिलाकर सबको ताम्र- | नेकी जड़की छाल और सेंधा नमकके अत्यन्त पात्रमें तांबेकी मूसलीसे घाटें इसे आंखमें डालनेसे | महीन चूर्णको बकरीके दूधमें पीसकर बत्तियां नेत्रनावादि रोग नष्ट होते हैं। बना लें। For Private And Personal Use Only
SR No.020116
Book TitleBharat Bhaishajya Ratnakar Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNagindas Chaganlal Shah, Gopinath Gupt, Nivaranchandra Bhattacharya
PublisherUnza Aayurvedik Pharmacy
Publication Year1928
Total Pages773
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy