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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra धूपप्रकरणम् ] www.kobatirth.org तृतीयो भागः । अथ बकारादिधूपप्रकरणम् । (४७२१) ब्रह्मसहो धूप: (वै. म. र. । पटल १५ ) श्रीवासागरुदारु प्रियङ्गुवंशत्वगोतुविट्कुष्ठम् । साज्यं पिष्टमजाया मूत्रेण छायया शुष्कम् ॥ तैर्धूपो ब्रह्मसहो नाम्नाऽपस्मारराक्षसपिशाचान् । भूतग्रहांश्च सर्पान् ज्वरं च चातुर्थकं हन्यात् ।। गूगल, अगर, देवदारु, फूलप्रियङ्गु, बांस की (४७२२) बिभीतकादिवर्त्तिः इति वकारादिधूपमकरणम् । ( हा. सं. । स्था. ३ अ. ४८ ) मज्जाबिभीतकफलस्य च शङ्खनाभिघृष्टं ससैन्धवयुतं पयसाम्लकेन । डेन नयनाञ्जनकेहिता च पित्तप्रसूतपटलस्य निवारणं च ॥ Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir अथ बकाराद्यञ्जनप्रकरणम् । बड़े फलकी मांगी ( मज्जा ), शङ्खनाभि और सेंधानमक समान भाग लेकर सबका महीन चूर्ण करके उसे काजी में घोटें और फिर समान भाग गुड़ में मिलाकर बत्तियां बना लें । छाल ( अथवा वस्रलोचन और दारचीनी ), बिल्ली की विष्टा और कूठ तथा घी समान भाग लेकर कूटने योग्य चीजों को कूटकर उसमें अन्य ओषधियां मिलाकर सबको बकरीके मूत्रमें घोटकर छाया में सुखा लें | इसकी धूप देनेसे अपस्मार, राक्षस, पिशाच, भूत और समस्त ग्रहविकार तथा चातुर्थिक ज्वर ( चौथिया ) का नाश होता है । [ ५९७ ] इसे आंख में आंजनेसे पित्तज गटलरोग नष्ट होता है । (४७२३) बिभीतमज्जादियोगः For Private And Personal Use Only ( ग. नि. रा. मा. | नेत्ररो. ३ ) कलितरुफलमज्जा चातिसुश्लक्ष्णपिष्टा हरति नयनपुष्पं प्रातरेवाञ्जनेन । बहेड़े के फलकी मांगोको अत्यन्त महीन पीसकर नित्यप्रति प्रातः काल आंख में आंजने आंखाका फूला नष्ट हो जाता है ।
SR No.020116
Book TitleBharat Bhaishajya Ratnakar Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNagindas Chaganlal Shah, Gopinath Gupt, Nivaranchandra Bhattacharya
PublisherUnza Aayurvedik Pharmacy
Publication Year1928
Total Pages773
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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