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भारत-भैषज्य-रत्नाकरः
[बकारादि
पेटपर इसकी मालिश या लेप करनेसे तथा । कर लेप करनेसे स्फुटित (फूटी हुई ) गण्डमाला इसीकी प्रधमन नस्य देनेसे विसूचिका रोग शान्त अवश्य नष्ट हो जाती है । होता है।
(४७१९) ब्रामणयष्टिकादिलेपः (४७१७) बोल्लजलम्
(यो. र.; वृ. नि. र. । अण्डवृद्धिरो.) (यो. त.। त. ६२ ) | सुपेषितं ब्राह्मणयष्टिकाया चत्वारो बोल्लभागाः स्युौं भागौ तु
मूलं समं तण्डुलधावनेन ।
कुलिञ्जनात् । | निहन्ति लेपाद्गलण्डमालां मस्तकी चैकभागा स्याघवानीपोटलीयुते ॥ कुरण्डमुख्यानखिलान्विकारान् ॥ जले समुचिते हण्डयां धर्ममध्ये दिनत्रयम् ।
भरंगीकी जड़को चावलेोके पानीके साथ संस्थाप्य तज्जलं लेपाद्धन्ति दर्दू न संशयः॥ पीसकर लेप करनेसे गण्डमाला और कुरण्डादि रोग
बीजाबोल ४ भाग, कुलिंजन २ भाग, रूमी | नष्ट होते हैं । मस्तगी और अजवायन १-१ भाग लेकर सबको
(४७२०) माझ्यादिलेपः पोटलीमें बांधकर हाण्डीमें ( चारगुने ) जलमें
(व. से. । व्रण.) डालकर धूपमें रख दें। तीन दिन पश्चात् इस पानीका लेप करनेसे
कपोतवङ्कालशुनं सशीर्ष
ससैन्धवं चित्रकमूलमिश्रम् । दाद अवश्य नष्ट हो जाता है।
तदश्वलेडूस्य रसेन पिष्टं (४७१८) ब्रह्मदण्डीयोगः
व्रणे प्रलेपो भवने हि रोग्णाम् ॥ (वृ. नि. र. । गण्ड.; यो. र. । गण्ड.)
ग्रामी, ल्हसन, अगर, सेंधानमक और चीतेकी ब्रह्मदण्डीयमूलं तु पिष्टं तण्डुलवारिणा। जड़ समान भाग लेकर चूर्ण बनावें । स्फुटितां हन्ति लेपेन गण्डमालां न संशयः॥ इसे घोडेकी लीदके रसमें पीसकर लेप करब्रह्मदण्डीकी जड़को चावलेोके पानीमें पीस- ' नेसे व्रणके स्थानपर बाल उग आते हैं ।
इति बकारादिलेपप्रकरणम् ।
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