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भारत-भैषज्य-रत्नाकरः।
[बकारादि
सूखे पत्तोंका बा अनारकी छालका अथवा सुपारीका । (२) गूगल, देवदारु, लालचन्दन और केसचूर्ण लगाना चाहिये ।
रके चूर्णको घीमें मिलाकर लेप करें। (४७०५) बलादिलेपः (१)
(३) क्षीरकाकोली, खरैटी, बिदारीकन्द, ( यो. र.; वृ. नि. र. । शिरोरो.)
सहजनेकी छाल और पुनर्नवा ( साठी ) को पीस
कर लेप करें। बलानीलोत्पलं दूर्वा तिलाः कृष्णा पुनर्नवा ।
(४) शतावर, क्षीरकाकोली, सुगन्ध तृण और शकेऽनन्तवाते च लेपः सर्वशिरोतिनुत् ॥
| मुलैठीके चूर्णको घीमें मिलाकर लेप करें। खरैटीकी जड़, नीलोत्पल, बघास, काले तिल
। ये चारों लेप राजयक्ष्मा में होने वाले शिरऔर पुनर्नवा ( साठी ) का लेप करनेसे शङ्खक शूल, अंसशूल और पार्श्वशूल में उपयोगी हैं । और अनन्तवातादि शिरोरोग नष्ट होते हैं।
(४७०८) बल्यादिलेपः (४७०६) बलादिलेपः (२)
(वृ. नि. र. । त्वग्दोषा.) ( ग. नि. । विसर्पा.)
बलिवेल्लाग्निभल्लातदन्तिशम्पाकनिम्बजैः । बलानागबलापथ्याभूर्जग्रन्थिबिभीतकम् । काजिके पेषितैलेपः श्वेतकुष्ठविनाशकृत् ।। वंशपत्राण्यमिमन्थं दद्याद्ग्रन्थिप्रलेपनम् ॥ ___ गन्धक, बायबिडंग, चीतेकी जड़की छाल,
खरैटी, गंगेरन, हर्र, भोजपत्रकी गांठ, बहेड़ा, भिलावा, दन्तीमूल, अमलतासके पत्ते और नीमकी बांसके पत्ते और अरणीकी जड़की छाल समान छाल समान भाग लेकर सबको कांजीमें पीसकर भाग लेकर सबको पीसकर लेप करने से ग्रन्थि- लेप करनेसे श्वेतकुष्ठ नष्ट होता है । विसर्प नष्ट होता है।
(४७०९) बाकुच्यादिलेपः (४७०७) बलादिलेपः (३)
(वृ. मा. । कुष्ठा.) (च. स. । चि. अ. ८ राजय.)
| कुडवोऽवल्गुजबीजाद्धरितालचतुर्थभागसंमिश्रः।
| मूत्रेण गवां पिष्टः सवर्णकरणः परः श्वित्रे ।। बला रास्ना तिलाः सर्पिर्मधुकं नीलमुत्पलम् ।
२० तोले बाबची और ५ तोले हरतालको पलङ्कषा देवदारु चन्दनं केशरं घृतम् ॥ कूट छानकर चूर्ण बनाकर रक्खें । वीरा बला विदारी च कृष्णगन्धा पुनर्नवा । ___ इसे गोमूत्रमें पीसकर लेप करनेसे श्वेतकुष्ट शतावरी पयस्या च कत्तृणं मधुकं घृतम् ।। नष्ट होता है। चत्वार एते श्लोकार्धेः प्रदेहाः परिकीर्तिताः । (४७१०) वाणदलादिलेपः शस्ताः ससृष्टदापाणा शिरःपाश्चासशूलिनाम् ॥ (वै. म. र. । प. ११)
(१) खरैटी, रास्ना, तिल, मुलैठी और बाणदलस्य स्वरसं लिकुचस्वरसं च तैलं च । नीलोत्पलके चूर्णको घीमें मिलाकर लेप करें। । सम्मिश्रितं प्रलेपयेद्धन्यात् कुष्ठानि दुष्टानि ॥
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