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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir [५९२] भारत-भैषज्य रत्नाकरः। [वकारादि अथ बकाराद्यासवारिष्टप्रकरणम्। (४६९८) बब्बुल्यासवः (बब्बूल्याचरिष्टः) । पञ्चाङ्गलपलद्वन्द्वं रास्नामेलां प्रसारिणीम् । (ग. नि. । आसवा. ६; शा. ध.। खं. २ | देवपुष्पमुशारञ्च श्वदंष्टान पलांशिकाम् ।। अ. १०; भै. र. । अतीसारा.) मासं भाण्डे स्थितस्त्वेष बलारिष्टो महाफलः। तुलाद्वयं तु बब्बुल्याश्चतुद्रोणेऽम्भसः पचेत् । हन्त्युग्रान् वातजान् रोगान् बलपुष्टयग्निवर्धनः।। द्रोणशेषे रसे शीते गुडस्य त्रिशतं क्षिपेत् ॥ खरेटीकी जड़ और असगन्ध १००-१०० धातक्याः षोडशपलं पिप्पलीनां पलद्वयम् । | पल ( प्रत्येक ६। सेर ) लेकर दोनों को कूटकर जातीलवङ्गकङ्कोलमेलात्वपत्रकेसरम् ॥ | पृथक् पृथक् ६४-६४ सेर पानीमें पकावें और मरिचेन समायुक्तं पलिकांस्तत्र कल्पयेत् । १६-१६ सेर पानी शेष रहने पर छानकर दोनों मासमात्र स्थितो ह्येष बब्बुल्यासवसज्ञितः ॥ काथांको एकत्र मिला लें और फिर उसके ठंडा होने क्षयं कुष्ठं प्रमेहांश्च कासश्वासांश्च नाशयेत् ।। पर उसमें ३ तुला (१८॥ सेर ) गुड़ और १ सेर १२ सेर बबूलकी छालको १२८ सेर पानीमें । धायके फूलोंका चूर्ण तथा १०-१० तोले क्षीरपकावें और जब ३२ सेर पानी शेष रह जाय तो विदारी और अरण्डकी छालका चूर्ण एवं ५-५ तोले छानकर ठंडा करके उसमें ३ तुला ( १८।। सेर) रास्ना, इलायची, प्रसारणी, लौंग, खस और गुड़, १ सेर धायके फूलांका चूर्ण और २ पल गोखरुका चूर्ण मिलाकर चिकने मटके में भरकर पीपल तथा १-१ पल (५-५ तोले ) जावत्री, उसका मुख बन्द कर दें और १ मास पश्चात् लैंौंग, कंकोल, इलायची, दार चीनी, तेजपात, नाग | निकालकर छान लें। केसर और काली मिर्चका चूर्ण मिलाकर सबको चिकने मटके में भरकर उसका मुख बन्द कर दें; इसके सेवनसे प्रबल वातव्याधि नष्ट होती और १ मास पश्चात् निकालकर छान लें। और बल पुष्टि तथा अग्निकी वृद्धि होती है। इसके सेवनसे क्षय, कुष्ट, प्रमेह, खांसी और (४७००) बीजकासव: श्वासका नाश होता है । (ग. नि. । आसवा.; चरक । चि. अ. (४६९९) बलारिष्टः १६ पाण्डु.) (भै. र. । वातव्या.) बीजकात्षोडशपलं त्रिफलायाश्च विंशतिः ॥ बलाश्वगन्धयोयिं पृथक पलशतं शुभम् ।। द्राक्षायाः पञ्च लाक्षायाः सप्त द्रोणे तथाऽम्भसि। चतुोणे जले पक्त्वा द्रोणमेवावशेषयेत् ॥ साध्य पादावशेषे च पूतशीते प्रदापयेत् ॥ शीते तस्मिन् रसे पूते क्षिपेद् गुडतुलात्रयम् । शर्करायास्तुलां प्रस्थं क्षौद्रं दद्याच कार्षिकम् । धातकी पोडशपलां पयस्यां द्विपलांशिकाम् ॥ । व्योषव्याघनखोशीरं क्रमुकं सैलवालुकम् ।। For Private And Personal Use Only
SR No.020116
Book TitleBharat Bhaishajya Ratnakar Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNagindas Chaganlal Shah, Gopinath Gupt, Nivaranchandra Bhattacharya
PublisherUnza Aayurvedik Pharmacy
Publication Year1928
Total Pages773
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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