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तेसभकरणम्]
तृतीयो भागः।
[५९१]
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२० तोले बेलॉगरीको गोमूत्र में पोसलें और बहड़ा, हर, आमला, पटोल, नीमकी छाल फिर २ सेर तेल में यह कल्क, ८ सेर बकरीका | और बासा समान भाग-मिश्रित १३ तोले १ दूध और ८ सेर पानी मिलाकर पकावें । जब तैल
माशे, अरहरका काथ ८ सेर और तिलका तेल २ मात्र शेष रह जाय तो उसे छान लें।
सेर लेकर सबको एकत्र मिलाकर काथ जलने तक इसे कानमें डालनेसे बधिरता नष्ट होती है।
पकाकर छान लें। (४६९३) बिस्वतेलम् (४)
यह तैल तिमिरको नष्ट करता है। (भै. र. । कर्ण.)
(४६९६) वृहतीतैलम् चिल्वगर्भ पचेतैलं गोमूत्राजपयोऽन्वितम् ।
(नयु. मृता. । त. ६) माधिर्ये पूरयेत्तेन कौँ स कफवातजित् ।। वृहतीपश्चाङ्गमानीय अजादुग्वे विभावयेत् ।
तिलका तेल २ सेर, बेलगिरीका कल्क २० यन्त्रे पातालके तैलं विधिना संहरेत्पुमान् ।। तोले और गोमूत्र तथा बकरीका दूध ४-४ सेर
एकविंशतियोगेन मुच्यते स्वकृतार्दनात् ।। लेकर सबको एकत्र मिलाकर पकावें । जब तैल मात्र शेष रह जाय तो उसे छान लें।
बड़ी कटेली के पञ्चाङ्गको कूट छानकर कई इसे कानों में डालनेसे बधिरता और कफज तथा
दिन तक बकरी के दूधमें घोटें और फिर उसकी यातज कर्णरोग नष्ट होते हैं।
गोलियां बनाकर सुखाकर पातालयन्त्रसे उनका तेल (४६९४) बिभीतकाचं तेलम्
निकाल लें। (व. से. । बालरो.)
इसकी २१ दिन तक इन्द्री पर मालिश करविभीतकं वचा कुष्ठं हरिताले मनःशिला ।
नेसे हस्तदोष जनित विकार (इन्द्रीकी शिथिलता
आदि) नष्ट हो जाते हैं। एभिस्तैलं विपकन्तु बालानां पूतिकर्णके ।।।
| (४६९७) वृहत्यादितलम् बहेड़ा, बच, कूठ, हरताल और मनसिलका घूर्ण ४-४ तोले तथा तिलका तैल २ सेर आर
(वृ. मा. । क्षुद्ररोगा.) पानी ८ सेर लेकर सबको एकत्र मिलाकर पानी | ग्रहतारससिद्धेन तैलेनाभ्यज्य बुद्धिमान् । जलने तक पकाकर छान लें।
शिलारोचनकासीसचूर्णैर्वा प्रतिसारयेत् ॥ ___यह तेल बालकेके प्रतिकर्ण रोगको नष्ट बड़ी कटेलाका रस ४ सेर और सरसोंका तेल करता है।
१ सेर लेकर दोनाको एकत्र मिलाकर पकावें। जब (४६९५) पिभीतकाचं तैलम्
तेलमात्र शेष रह जाय तो उसे छान लें। (व. से.। नेत्ररो.)
अलस (खारवों) पर यह तेल लगाकर मनविभीतफशिवाधात्रीपटोलारिष्टवासकैः । सिल, गोरोचन और कसीसका पूर्ण मलना आदकीरससंसिद्धं तैलं तिभिरनुत्परम् ॥ ' चाहिये ।
इति वकारादितैलपकरणम्
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