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भारत - भैषज्य रत्नाकरः ।
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इसे सेवन करनेसे वाणि शुद्ध हो जाती है । इसके केवल १ सप्ताह के सेवनसे स्वर किन्नरोके समान सुन्दर हो जाता है । २ सप्ताह तक सेवन करने से मुख अत्यन्त कान्तिमान् हो जाता है । यदि इसे १ मास तक सेवन किया जाय तो मनुष्य श्रुतिधर हो जाता है इसके अतिरिक्त यह अठारह प्रकारके कुष्ठ, अर्श, पांच प्रकारके गुल्म, प्रमेह और पांच प्रकारकी खांसी को भी नष्ट करता 1
यह घृत बल वर्ण और अग्निकी वृद्धि करने वाला तथा बन्ध्या स्त्रियां और अल्पशुक्र मनुष्यों के लिये हितकारी है । (४६७८) ब्राह्मीघृतम् (५)
( सु. सं. । चि. अ. २८ ) ब्राह्मस्वरप्रस्थ घृतप्रस्थं विडङ्गतण्डुलानां कुडवं द्वे द्वे पले चत्रिवृतयोदशहरीतक्यामलकविभीतकानि श्लक्ष्णपिष्टान्यावाप्यैकध्यं साधयित्वा स्वनुगुप्तं निदध्यात् । ततः पूर्वविधानेन मात्रां यथाबलमुपयुञ्जीत जीर्णे पयः सर्पिरोदन इत्याहारः एतेनोर्द्धमधस्तिर्य्यकक्रमयो निष्क्रामन्ति । अलक्ष्मीरपक्रामति, पुष्कर कर्णः स्थिरवयाः श्रुतनिगादी त्रिवर्ष शतायुभवत्येतदेव कुष्ठविषमज्वरापस्मारोन्माद विषभूत ग्रहेष्वन्येषु च महाव्याधिषु च संशोधनमादिशन्ति ॥
ब्राह्मीका स्वरस ४ सेर, घी २ सेर तथा निम्न लिखित कल्क ( और १६ सेर पानी )
[ बकारादि
एकत्र मिलाकर पकायें । जब घृतमात्र शेष रह जाय तो उसे छान ले 1
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कल्क- - बायबिडंगके चावल ( गिरी ) २० तोले, बच और निसोत १०-१० तोले तथा हर्र, बहेड़ा और आमला २०-२० तोले । सबको पानीके साथ पीस लें ।
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इसे यथोचित मात्रानुसार सेवन करने और औषध पचने पर घृतयुक्त भात तथा दूधका आहार करनेसे शरीरसे कृमि निकल जाते हैं । अलक्ष्मी दूर हो जाती है । दूरकी आवाज सुनाई देने लगती है । आयु स्थिर हो जाती है । मनुष्य वेदवक्ता हो जाता है और उसे ३०० वर्षकी आयु प्राप्त होती है ।
यह घृत कुष्ठ, विषमज्वर, अपस्मार, उन्माद, विष, भूत, ग्रह और अन्य अनेक महाव्याधियोंको नष्ट करता है ।
(४६७९) ब्राह्मीघृतम् (६)
( वै. म. र. | पटल १५ ) ब्राह्मस्वरसे सिद्धं कुष्ठव चाशङ्खपुष्पिकागर्भे । आज पीतं सर्पिः सर्वापस्मारदोषघ्नम् ।।
ब्राह्मीका स्वरस ४ सेर, बकरीका घी १ सेर तथा कुल, बच और शंखपुष्पीका समान भाग मिश्रित कल्क ५ तोले लेकर सबको एकत्र मिलाकर पकावें । जब स्वरस जल जाय तो घृतको छान लें।
इसे पीने से समस्त प्रकारका अपस्मार ( मिरगी ) रोग नष्ट होता है ।
इति वकारादिघृतप्रकरणम् ।
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