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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir [५८२] भारत-भैषज्य-रत्नाकरः। [वकारादि mean - दाना, तिन्तडीक और दोनों जीरे । प्रत्येक ओषधि पयश्च दद्याद्विगुणं विपर्क ११-१। तोला लेकर सबको पानीके साथ पीस लें। तद्ब्रह्मजुष्टं प्रवदन्ति सर्पिः॥ विधि---२ सेर घी, ४ सेर मस्तु ( दहीका प्लीहोदरं दृष्यपथोदरच तोड़) और उपरोक्त काथ तथा कल्क एकत्र मिला आयम्यमानं जठरं निहन्ति । कर मन्दाग्निपर पकावें । जब घृतमात्र शेष रह ___ मनसिल, सेठ, नाडीका शक, चैटलीकी जाय तो छान लें। जड़, कटेली, पांचों नमक, हींग और पीपल १-१ यह घृत वातज तथा त्रिदोषज शूल, यकृच्छूल | कर्ष (११-१। तोला ) लेकर सबको पानीके साथ गुल्म, प्लीहा, हृच्छूल, पार्श्वशूल और अङ्गशूलको पीसकर कल्क बनावें । तत्पश्चात् २ सेर घीमें नष्ट तथा बलवर्ण और अग्निकी वृद्धि करता है। | यह कल्क, ४ सेर दूध और ८ सेर गोमूत्र मिलाहृदयके लिये हितकारी है। | कर मन्दाग्निपर पकावें । जब घृतमात्र शेष रह (४६७२) बृहतीचित्रकक्षारघृतम् जाय तो उसे छान लें। (व. से. । ग्रहण्य.) यह घृत प्लीहोदर और अन्य समस्त प्रकारके बहतीचित्रकक्षारः सप्तवारपरिस्रतः।। उदर विकारोंको नष्ट करता है। (४६७४) ब्रामीघृतम् (१) द्विगुणेन घृतं पकं वर्द्धयत्याशु पावकम् ।। बनभंटा और चीतेकी भस्मको ६ गुने पानी .(ग. नि. । घृता.; वा. भ. । उ. अ. ६) द्वौ प्रस्थौ स्वरसाहाया घृतपस्थं च साधयेत् । में मिलाकर क्षार बनानेकी विधिसे सात बार छान लें। तदनन्तर १ सेर घीमें २ सेर यह पानी मिला व्योपश्यामात्रिब्राह्मीशङ्खपुष्पीनृपद्रमैः॥ ससप्तलाकृमिहरैः कल्कितैरक्षसम्मितैः । कर पकावें । पलवृद्धया प्रयुञ्जीत यावन्मात्रा चतुष्पलं ॥ इसके सेवनसे अग्नि अत्यन्त शीव दीप्त हो उन्मादकुष्ठापस्मारहरं वन्ध्यासुतपदम् । जाती है। वाकस्मृतिस्वरमेधाकृद्धन्यं ब्राह्मीघृतं शुभम् ॥ (४६७३) ब्रह्मघृतम् (ब्राह्मं घृतम् ) ___ब्राह्मीका स्वरस ४ सेर, घी २ सेर और (व. से. । उदर.; ग. नि. । घृता.) ११-१। तोला सोंठ, मिर्च, पीपल, काली निसोत, शिलाहयं नागरकालशाकं निसोत, ब्राह्मी, शंखपुष्पी, अमलतासकी छाल, काकादनीमूलनिदिग्धिका च । सातलाकी छाल और बायबिडंगका कल्क (तथा पश्चैव दद्याल्लवणानि हिङ्गु ८ सेर पानी ) एकत्र मिलाकर पकावें । जब घृत कृष्णा च तैरक्षसमैः पृथक्पृथक् ॥ मात्र शेष रह जाय तो छान लें। प्रस्थं घृतं स्याच पचेच्छनैः शनै इसे ५ तोलेकी मात्रासे सेवन करना प्रारम्भ श्चतुर्गुणं मूत्रमतः पदीयते। करें और धीरे धीरे २० तोले तक मात्रा बढ़ा दें। For Private And Personal Use Only
SR No.020116
Book TitleBharat Bhaishajya Ratnakar Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNagindas Chaganlal Shah, Gopinath Gupt, Nivaranchandra Bhattacharya
PublisherUnza Aayurvedik Pharmacy
Publication Year1928
Total Pages773
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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