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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कपायपकरणम् ] तृतीयो भागः। [५५९] बिजौरे नीबूकी जड़को शीतल जलमें घिस- अलबेतके काथमें बिडनमक मिलाकर पीने कर पीनेसे शर्करा शीघ्र ही पेशाबके साथ निकल या हींग और सज्जीवारको तक्रके साथ सेवन करने जाती है। से भी गुल्म नष्ट हो जाता है। (४५९३) बीजपूररसयोगः (४५९६) बीजपूरस्वरसयोगः (वृ. नि. र. । कर्ण.) | (शा. ध. । खं. २ अ. १; यो. र. । शूला.) स्वर्जिकाचूर्णसंयुक्त बीजपूररसं क्षिपेत् । बीजपूररसः पानान्मधुक्षारयुतो जयेत् । कर्णसावरुजादौ तु प्रशस्तं नात्र संशयः॥ पाहद्वस्तिशूलानि कोष्ठवायुं च दारुणम् ।। भिजो रेके रसमें सज्जीखार मिलाकर कानमें बिजोर नीबूके रसमें शहद और जवाखार डालनेसे कर्णवाव और कर्णपीड़ा आदिका अवश्य | मिलाकर पीनेसे पसली, हृदय और बस्तिका शूल नाश हो जाता है। | तथा कोटेकी दुस्साध्य वायुका नाश होता है । (४५९४) यीजपूररसयोगः (४५९७) वीजपूरादिपाचनकषायः (ग. नि. । शूला.) (शा. घ. । अ. २.; वृ. यो. त. । त. ५९) सुपकबीजपूरस्य रसः सैन्धवमिश्रितः। वीजपूरशिवापथ्यानागरग्रन्थिकैः शृतम् । पीतः पथ्याशिनो हन्ति हृच्छूलमतिदारुणम् ॥ सक्षारं पाचनं श्लेष्मज्वरे द्वादशवासरे ॥ __बिजौरे नींबूके रसमें सेंधा नमक मिलाकर बिजौरे नीबूकी जड़की छाल, आमला, हर्र, पीने और पथ्य पालन करनेसे दारुण हृच्छुल भी सांट और पीपलामूलके काथमें जवाग्वार मिलाकर नष्ट हो जाता है। कफवरमें बारहवें दिन पीना चाहिये । यह काथ ज्वरपाचक है। (४५९५) बीजपूररसादियोगः (४५९८) योजपूरादिपुटपाक: (ग. नि. । गुल्मा.) (यो. र. । छार्द.; गा. ध. । खं. २ अ. १) बीजपूररसो हिङ्ग सैन्धवं विडपूर्वकम् । बीजपूराम्रजम्यूनां पल्लवानि जटाः पृथक् । लवणं दाडिमं शुक्तं सितया वातगुल्मजिन् ॥ विपचेत पुटपाकन क्षौद्रयुक्तश्च तद्रसः ॥ अम्लवेतसनिर्यासो लवणं विडपूर्वकम् ।। | छर्दि निवारयेद् घोरां सर्वदोपसमुद्भवाम् ।। रामठं स्वर्जिकाक्षारस्तकपीतं च गुल्महत् ।। बिजौरा, आम और जामनमें से किसी एकके बिजौ रके रसमें हींग, सेंधा और बिनमक | पत्तों या छालको पुटपाक विधिसे पकाकर उसका मिलाकर पीनेसे या सिरके में सेंधानमक, अनारका | रस निकालें। रस और मिश्री मिलाकर पीनेसे वातज गुल्म नष्ट | इसमें शहद मिलाकर पीनेसे सर्वदोषज भयहोता है। कर छार्द भी नष्ट हो जाती है। For Private And Personal Use Only
SR No.020116
Book TitleBharat Bhaishajya Ratnakar Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNagindas Chaganlal Shah, Gopinath Gupt, Nivaranchandra Bhattacharya
PublisherUnza Aayurvedik Pharmacy
Publication Year1928
Total Pages773
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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