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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कपायप्रकरणम् ] तृतीयो भागः। [५५५] बेलगिरीके कल्कमें सांठका चूर्ण और गुड़ । सलाईसे एक बिन्दूके बराबर दाग देना चाहिये । मिलाकर सेवन करने तथा तक पर रहनेसे भयङ्कर एवं बालकको बेलकी जड़की छाल, नागरमोथा, ग्रहणी रोग भी नष्ट हो जाता है। पाठा, हर, बहेड़ा, आमला और छोटी तथा बड़ी (४५७१) बिल्बादिकषायः कटेलीके काथमें गुड़ मिलाकर पिलाना चाहिये। (ग. नि.; व. से.; वृ. नि. र.; यो. र. । अतिसारा.), (४५७४) बिल्वादिकाथः (३) बिल्वसकयवाम्भोदवालकातिविषाकृतः।। (हा. स. । तृ. स्था. अ. ७) कपायो हन्त्यतीसारं सामं पित्तसमुद्भवम् ।। बिल्वाग्निमन्पचित्रकनागराश्च बेलगिरी, इन्द्रजौ, नागरमोथा, सुगन्धवाला। एरण्डहिङ्गु सह सैन्धवकं समांशम् । और अतीसका काथ आमयुक्त पित्तातीसारको | काथो निहन्ति कफजोद्भवशुलसङ्घ नष्ट करता है। सद्यस्तथैव जठरानलवर्धनं च ॥ (४५७२) पिल्वादिकाथः (१) बेलछाल, अरणी, बासा, चीता, सोंठ, अर(व. से. । अतीसारा.) ण्डकी जड़, हींग और सेंधा नमकका काथ सेवन करनेसे कफजशूल शीघ्र ही नष्ट हो जाता तथा बिल्वं वत्सकबीनानि पाठाहिङ्गशिवान्विता । अग्नि दीस होती है। वातश्लेष्मातिसारेषु कषायं पाचनं पिबेत् ॥ ___ बेलगिरी, इन्द्रजौ, पाठा और हरके काथमें (४५७५) बिल्वादिकाथः (४) हींग डालकर पीनेसे वातकफज अतिसारका नाश (च. सं. । चिकि. स्थान अ. १९) होता है । यह काथ पाचक है। बिल्वं कर्कटिका मुस्तमभया विश्वभेषजम् । (४५७३) बिस्वादिकायः (२) | वचा विडङ्ग भूतीकं धान्यकं देवदारु च ॥ ( यो. र.; वृ. नि. र. । बालरो.) कुष्ठं सातिविषा पाटा चव्यं कटुकरोहिणी । अमिना स्वेदयेद्वापि दाहयेच शलाकया । पिप्पली पिप्पलीमूलं चित्रकं हस्तिपिप्पली । जठरे बिन्दुकाकारं पृष्ठभागे यथा ध्रुवम् ॥ योगाः श्लोकाविहिताश्चत्वारस्तान् प्रयोजयेत्। बिल्वमूलकं नीरदो की गृतालेष्मातिसारेषु कायाग्निबलवर्धनान् ॥ फलं तथा सिंहिकाद्वयम् । (१) बेलगिरी, काकड़ासिंगी, नागरमोथा, गौडमिश्रितं कायितं समं हर्र और सेठ। पाययेच्छि फुल्लिकापहम् ॥ (२) बच, बायबिडंग, अजवायन, धनिया उत्फुल्लिका रोगमें बालकके पेट पर सेक और देवदार । करनी चाहिये तथा उसके पेट और पीठपर गर्म (३) कूठ, अतीस, पाठा, चव, कुटकी । For Private And Personal Use Only
SR No.020116
Book TitleBharat Bhaishajya Ratnakar Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNagindas Chaganlal Shah, Gopinath Gupt, Nivaranchandra Bhattacharya
PublisherUnza Aayurvedik Pharmacy
Publication Year1928
Total Pages773
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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