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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org [ ५५४] मन्दाग्निमें दबा दें । जब वे अच्छी तरह स्वेदित हो जायं तो निकालकर उनकी छाल उतार लें । इसमें से जरा जरासा टुकड़ा मुंह में रखकर रस चूसनेसे खांसी नष्ट होती है । (४५६४) विभीतकादिकाथः भारत - भैषज्य रत्नाकरः । (ग. नि. । ज्वर. ) बिभीतो व्याधिघातथ कटुका त्रिफला निशा । काथो हन्ति तृषां दाहं ज्वरं च विषमं द्रुतम् ॥ बहेड़ा, अमलतास, कुटकी, हर्र, बहेड़ा, आमला और हल्दोका काथ तृषा, दाह और विषमज्वरको नष्ट करता है । (४५६५) बिभीतकादिकाथः (बृ. मा.; व. से.; वृ. नि. र. | नेत्र.; यो. र. नेत्र. ) farida शिवाधात्री पटोलारिष्टवासकैः । काथो गुग्गुलुना पेयः शोफशूलाक्षिपाकहा ।। | बहेड़ा, हर्र, आमला, परवल, नीमकी छाल और बासेके क्वाथमें गूगल मिलाकर पीनेसे शोध और शूयुक्त नेत्रपा नष्ट हो जाता है । (४५६६) बिल्वपञ्चकक्काथः (भै. र. । ज्वरा. ) शालपर्णी पृश्निपर्णी बला विल्वं सदाडिमम् । विल्वपञ्चकमित्येतत् काथं कृत्वा प्रदापयेत् ॥ अतिसारे ज्वरे छद्य शस्यते विल्वपञ्चकम् ॥ शालपर्णी, पृष्टपर्णी, खरैटी, बेलछाल और अनारकी बकलीका काथ अतिसार, ज्वर और छार्दका नाश करता है 1 Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir । (४५६७) बिल्वपत्ररसादियोगः [ बकारादि (बृ. मा. व. से., यो. र.; वृ. नि. र. 1 शोथा.) बिल्वपत्ररसं पूतं सोषर्ण श्रययौ त्रिदोषजे । विट्स चैव दुर्नाम्नि विदध्यात्कामलालु च ॥ बेलपत्र रसको छानकर उसमें काली मिर्चका चूर्ण मिलाकर पीने से त्रिदोषज शोथ, मलावरोध, अर्श और कामलाका नाश होता है । (४५६८) बिल्वमूलादिकषायः ( ग. नि. । मूत्राघात . ) बिल्वारग्वधमूलानां मूत्रकृच्छ्री दिनत्रयम् । शृतं शीतं पिबेत्सम्यक्कषायं सम्प्रसाधितम् ॥ बेल और अमलतासकी जड़के काथको ठण्डा करके ३ दिन तक पीने से मूत्रकृच्छ्र रोग नष्ट हो जाता है I (४५६९) बिल्वमूलादिकाथ: ( व. से. । बाल. ) बिल्वमूलकषायेण लाजाचैव सशर्कराः । आलोय पाययेद्वालं छतीसारनाशनम् ॥ वेलकी जड़की छालके काथमें धानकी atitar चूर्ण और खांड मिलाकर उसे अच्छी तरह आलोडित करके पिलाने से बालकोंकी छर्दि और अतिसारका नाश होता है । (४५७०) बिल्वशलाटुयोगः ( ग. नि.; वृ. मा. । ग्रहण्य. ) श्रीफलशलाटुकल्को नागरचूर्णेन मिश्रितः For Private And Personal Use Only सगुडः । ग्रहणीगदमत्युग्रं तक्रभुजां सम्मतो जयति ॥
SR No.020116
Book TitleBharat Bhaishajya Ratnakar Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNagindas Chaganlal Shah, Gopinath Gupt, Nivaranchandra Bhattacharya
PublisherUnza Aayurvedik Pharmacy
Publication Year1928
Total Pages773
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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