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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कषायप्रकरणम् ] तृतीयो भागः। [५५३] (४५५८) पलासिद्धक्षीरम् । भिगोकर रख दें और उसे प्रातःकाल पीसकर ( हा. स. । तृ. स्था. अ. १०) तैलमें मिलाकर रोगीको पिलावें। बलाश्चदंष्ट्रामलकीफलानि ___ यह प्रयोग श्वेत कुष्ठको नष्ट करता है। द्राक्षा मधुकं मथुयष्टिकानाम् । (४५६१) बाकुचीबीजयोगः सिद पयः पानमिदं हितं स्यात् । (ग. नि. । कुष्ठा.; वृ. यो. त. । त. १२०) पित्ते सरते मनुजस्य शान्त्यै ॥ विभीतकत्वङ्मलयजटानां खरैटीकी जड़, गोखरु, आमला, मुनक्का, । काथेन पीतं गुडसंयुतेन । महुवा और मुलैठीसे सिद्ध दूध पीनेसे रक्तपित्त आवलगुजं बीजमपाकरोति रोग नष्ट हो जाता है। चित्राणि कुष्ठान्यपि पुण्डरीकम् ।। ( समान भाग मिश्रित ओषधियां ५ तोले, ! बहेड़ेकी छाल और कठूमर ( कठगूलर )की दूध १ सेर, पानी ४ सेर । सबको एकत्र मिला- जडको छालके काथमें गुड़ मिलाकर उसमें बाबकर पानी जलने तक पकायें।) चीके बीजोंका कल्क डालकर पीनेसे श्वेतकुष्ठ और पुण्डरीक कुष्टका नाश होता है । (४५५९) यल्यमहाकषायः (४५६२) यालकादिकल्कः ( च. सं. । सूत्रस्थान अ. ४ ) (ग. नि. । अर्श.) एन्द्रपभ्यतिरसर्घ्यप्रोक्तापयस्याश्वगन्धास्थिरा बालकं शृङ्गबेरं च पाययेत्तण्डुलाम्बुना । रोहिणीबलातिबला इति दशेमानि बल्यानि नि मधुयुक्तं प्रशमयेदर्शः पित्तसमुद्भवम् ॥ भवन्ति । ___इन्द्रायन, कांच, शतावर, मापपर्णी, विदारी- | सुगन्धबाला और सांठको चावलेोके पानीमें कन्द ( या क्षीरकाकोली ), असगन्ध, शालपर्णी, । | पीसकर उसमें शहद मिलाकर पीनेसे पित्तज अर्श कुटकी, बला ( खरैटी) और अतिबला ( कंघी)। का नाश होता है। इन दश चीज़ोंके योगको ‘बल्यमहाकपाय' (४५६३) बिभीतकपुटपाक: कहते हैं। (शा. ध. । ख. २ अ. १; वृ. मा.। कासा.; (४५६०) याकुचिकाप्रयोगः ग. नि. । कास.; वै. र. । ज्वर.) (वै. म. । पटल ११) बिभीतकं घृताभ्यक्तं गोशकृत्परिवेष्टितम् । कलित्वक साधिते तोये वासिता निशि बाकुची। स्विममनौ हरेत्कासं ध्रुवमास्यविधारितम् ।। पिष्ट्वा तैलेन पीता च चित्रशत्रुविनशिानी ॥ बहेड़ेके फलेको घीमें तर करके उनके ऊपर रात्रिको बहेडेको छालके काथमें बाबचीको गायका गोबर लपेट दें और फिर उन्हें कण्डोंकी For Private And Personal Use Only
SR No.020116
Book TitleBharat Bhaishajya Ratnakar Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNagindas Chaganlal Shah, Gopinath Gupt, Nivaranchandra Bhattacharya
PublisherUnza Aayurvedik Pharmacy
Publication Year1928
Total Pages773
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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