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कषायप्रकरणम् ]
तृतीयो भागः।
[५५३]
(४५५८) पलासिद्धक्षीरम्
। भिगोकर रख दें और उसे प्रातःकाल पीसकर ( हा. स. । तृ. स्था. अ. १०) तैलमें मिलाकर रोगीको पिलावें। बलाश्चदंष्ट्रामलकीफलानि
___ यह प्रयोग श्वेत कुष्ठको नष्ट करता है। द्राक्षा मधुकं मथुयष्टिकानाम् । (४५६१) बाकुचीबीजयोगः सिद पयः पानमिदं हितं स्यात् । (ग. नि. । कुष्ठा.; वृ. यो. त. । त. १२०)
पित्ते सरते मनुजस्य शान्त्यै ॥ विभीतकत्वङ्मलयजटानां खरैटीकी जड़, गोखरु, आमला, मुनक्का, ।
काथेन पीतं गुडसंयुतेन । महुवा और मुलैठीसे सिद्ध दूध पीनेसे रक्तपित्त आवलगुजं बीजमपाकरोति रोग नष्ट हो जाता है।
चित्राणि कुष्ठान्यपि पुण्डरीकम् ।। ( समान भाग मिश्रित ओषधियां ५ तोले, ! बहेड़ेकी छाल और कठूमर ( कठगूलर )की दूध १ सेर, पानी ४ सेर । सबको एकत्र मिला- जडको छालके काथमें गुड़ मिलाकर उसमें बाबकर पानी जलने तक पकायें।)
चीके बीजोंका कल्क डालकर पीनेसे श्वेतकुष्ठ और
पुण्डरीक कुष्टका नाश होता है । (४५५९) यल्यमहाकषायः
(४५६२) यालकादिकल्कः ( च. सं. । सूत्रस्थान अ. ४ )
(ग. नि. । अर्श.) एन्द्रपभ्यतिरसर्घ्यप्रोक्तापयस्याश्वगन्धास्थिरा
बालकं शृङ्गबेरं च पाययेत्तण्डुलाम्बुना । रोहिणीबलातिबला इति दशेमानि बल्यानि
नि मधुयुक्तं प्रशमयेदर्शः पित्तसमुद्भवम् ॥ भवन्ति । ___इन्द्रायन, कांच, शतावर, मापपर्णी, विदारी- |
सुगन्धबाला और सांठको चावलेोके पानीमें कन्द ( या क्षीरकाकोली ), असगन्ध, शालपर्णी, ।
| पीसकर उसमें शहद मिलाकर पीनेसे पित्तज अर्श कुटकी, बला ( खरैटी) और अतिबला ( कंघी)।
का नाश होता है। इन दश चीज़ोंके योगको ‘बल्यमहाकपाय' (४५६३) बिभीतकपुटपाक: कहते हैं।
(शा. ध. । ख. २ अ. १; वृ. मा.। कासा.; (४५६०) याकुचिकाप्रयोगः
ग. नि. । कास.; वै. र. । ज्वर.) (वै. म. । पटल ११) बिभीतकं घृताभ्यक्तं गोशकृत्परिवेष्टितम् । कलित्वक साधिते तोये वासिता निशि बाकुची। स्विममनौ हरेत्कासं ध्रुवमास्यविधारितम् ।। पिष्ट्वा तैलेन पीता च चित्रशत्रुविनशिानी ॥ बहेड़ेके फलेको घीमें तर करके उनके ऊपर
रात्रिको बहेडेको छालके काथमें बाबचीको गायका गोबर लपेट दें और फिर उन्हें कण्डोंकी
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