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[५५०]
भारत-भैषज्य-रत्नाकरः ।
[बकारादि
अथ बकारादिकषायप्रकरणम्।
(४५४०) यकुलप्रयोगः
रक्तातिसारके रोगीको दिनमें बेरीके पत्तोंका (वै. म. र. । पटल ६) | रस और रात्रिको सेठि तथा कदम्बकी छालका काथ बकुलजटाभवकल्कः पयसा पीत: प्रगे त्रिदिनम्। | पाना चाहिये । दृढतरमूलान् कुरुते दन्तान् वृद्धस्य किमुत इससे ३ दिनमें रक्तातिसार नष्ट हो जाता है।
बालानाम् ॥ (४५४३) पदरीमूलकल्कः मौलसिरीकी जड़की छालको दूधके साश्च । (शा. ध. । खं. २ अ. ५; व. से. । अति.) पीसकर उसीमें मिलाकर ३ दिन तक प्रातःकाल | बदरीमूलकल्केन तिलफल्कश्च योजितः । सेवन करनेसे वृद्धोंके दांत भी दृढ़ हो जाते हैं। मधुक्षीरयुतः कुर्याद्रक्तातीसारनाशनम् ॥ (४५४१) बदरीपत्रयोगः
बेरीकी जड़की छाल और तिलांको पीसकर
दूधमें मिला लें और उसमें शहद डालकर रोगीको (वृ. मा. । स्वर.; यो. र. । स्वरभे.; यो.
पिला दें। त. । त. ३१)
इससे रक्तातिसार नष्ट होता है। बदरीपत्रकल्कं वा घृतभृष्टं ससैन्धवम् ।।
। (४५४४) पन्नूलपल्लवयोगः स्वरोपघाते कासे च लेहमेनं प्रयोजयेत् ॥
(रा. मा. । राजयक्ष्मा.) ___ बेरीके पत्तोंको पीसकर घीमें भून लें और
| बबूलपल्लवचयं सलिलेन सार्थउसमें सेंधानमक मिलाकर रोगीको चटावें।
मापिष्य यः पिवति तस्य कुतोऽतिसारः। इससे स्वरभंग (गलाबैठना) और खांसीका
कोकर ( बबूल ) के पत्तोंको पानीके साथ नाश होता है।
पीसकर पीनेसे अतिसारका नाम भी नहीं रहता। (४५४२) यदरीपल्लवरसयोगः (४५४५) बन्यूलरसक्रिया (वै. म. र. । पटल ६)
(व. से. । उदररो.) बदरीपल्लवरसं पिबेद्रक्तातिसारवान् । | बन्यूलस्य त्वचं श्रेष्ठां काथयेत्सलिलेन तु । शुण्ठीकदम्बत्वक्काथं पिबेद्रात्रौ दिनत्रयम् ॥ । पुनः पचेत्कषायन्तु यावत्सान्द्रत्वमागतम् ॥
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