________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
मिभप्रकरणम्
तृतीयो भागः।
[५४९]
अथ फकारादिमिश्रप्रकरणम्।
(४५३८-३९) फलद्राव:
(ग. नि. । वाजीनारणा.) सञ्चूर्ण्य शुण्ठी सगुडां च निस्त्वचं ___ कृत्वा च पकाम्रफलं हि निप्कुलम् । घर्मे धृतं तद्रवति द्वियामात
सशर्करं पानकयोग्यमुत्तमम् ।। जम्बूत्वचावहिमरीचदूर्वा
चूर्णेनपक्वं कदलीफलं च । श्रेष्ठेन युक्तं प्रविलिप्य निस्त्वचं
घर्मे धतं द्वावमुपैति यामात ॥
(१) पके आमेको छीलकर उनका गूदा उतार लें और उसमें मोठ तथा गुडका चूर्ण मिलाकर | धूप में रख दें। २ पहरमें आम्रद्राव तैयार हो जायगा। इसे शीशीमें भरकर सुरक्षित रक्खें ।
इसे खांडके शर्यतमें डालकर पीना चाहिये । (२) जामनकी छाल, चीता, कालीमिर्च, दूरघास और त्रिफलाके समान भाग मिश्रित चूर्णको केलेकी छिलकेरहित फलियों पर लेप करके धूपमें रख दें तो १ पहरमें उनका पानी हो जायगा।
इति फकारादिमिश्रप्रकरणम् ।
For Private And Personal Use Only