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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir [५४८] भारत-भैषज्य रत्नाकरः। [फकारादि AAAAAAAAAAAAAAAAAAAAA A AA (नोट----इस पर तनिक भी कुपथ्य होनसे । रजनीकेशरत्रुटयो जारयुग्मं वानिका। मुंह आ जाता है।) चन्दनद्वितय कृष्णा वांसा मांसी च पत्रकम् ।। (४५३६) फिरणशमनीवटी अर्द्धकर्षमितं सर्व चूर्णयित्वा च निक्षिपेत् । (भै. र. । परिशिष्टे) तत्सर्वं मधुसर्पियो द्विपलाभ्यां पृथक्य ।। उडेकपारदमित खदिराद्विटर मदयेदय तत्लादेददकमित नरः । माकारकादिकरमा विघृष्य सप्त। व्रणः फिरङ्गरोगोत्यस्तस्यावश्यं विनश्यति ॥ कृत्वा वटीश्च खलु माक्षिकरामट अन्योऽपि चिरजातोऽपि प्रशाम्यति महा घणः। मातः फिरणशमनाय गिलेच नित्यम् ।। एतद्भक्षयतः शोथो मुखस्यान्तन जायते ॥ कटम्ले च परित्याज्ये भोज्यं रूक्ष विशेषतः। वर्जयेदत्र लवणमेकं विशतिवासरान् ।। समिदिवसनणां फिरतो नश्यति ध्रुवम् ॥ ___ शुद्ध पारद, शुद्ध गन्धक और कत्था १-१ शुद्ध पारद ५ माशे, कत्था १० माशे और कर्ष ( ११-१।) तोला लेकर तीनोंकी कजली अकरकरेका चूर्ण १० माशे लेकर तीनोंको एकत्र बनावें तत्पश्चात् उसमें आधा आधा कर्ष हल्दी, मिलाकर खरल करें फिर उसमें १५ माशे शहद केसर, छोटी इलायची, दोनों जीरे, अजवायन, सफेद डालकर अच्छी तरह घोटकर सबकी ७ गोलियां और लाल चन्दन, पीपल, वंसलोचन, जटामांसी बना लें। और तेजपातका पूर्ण मिलाकर सबको अच्छी तरह इनमें से नित्य प्रति प्रातः काल १-१ गोली खरल करें और फिर उसमें १०-१० तोले शहद निगलनेसे ७ दिनमें फिरंगरोग (आतशक) अवश्य और घी मिलाकर सुरक्षित रखें । नष्ट हो जाता है। अपथ्य-तीक्ष्ण और स्पट्टी चीज़ों से । इसमें से नित्यप्रति आधा कर्ष औषध सेवन परहेज़ और विशेषतः रूक्ष भोजन करना चाहिये। करनेसे आतशकके घाव तथा अन्य प्रकारके पुराने (४५३७) फिराररसा और बड़े बड़े धाय भी अवश्य नष्ट हो जाते हैं । (भा. . म. खं. फिरारोगा.) इसके सेवनसे मुखमें शोथ उत्पन्न नहीं होता। पारदः कर्षमात्रः स्वातावमात्र तु गन्धकम् । परहेज--२१ दिन तक लवण न खाना सावन्मात्रस्तु खदिरस्तेषां कुर्यात्तु कज्जलीम् ॥ चाहिये । इति फकारादिरसमकरणम् । For Private And Personal Use Only
SR No.020116
Book TitleBharat Bhaishajya Ratnakar Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNagindas Chaganlal Shah, Gopinath Gupt, Nivaranchandra Bhattacharya
PublisherUnza Aayurvedik Pharmacy
Publication Year1928
Total Pages773
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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