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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir [५४४] भारत-भैषज्य-रत्नाकरः। [फकारादि याच वन्ध्या पिबेनारी या च कन्यामजायिनी।। यदि इस घृतको पुरुष सेवन करता है पीत्वैतत्स्थिरगर्भा स्याधा च मूता पुनः तो उसमें स्त्रीसमागमकी शक्ति बढ़ती है। स्थिता ॥ | जिस स्त्रीके सन्तान न होती हो या जिसके अनायुषं या जनयेधा वा जनयते मृतम् । कन्या ही कन्याएं होती है, जिसके बार बार सा च सञ्जनयत्पुत्र दाघायुषमरागणम् ।। गर्भ रहकर नष्ट हो जाता हो, जो खी मृत या वेदवेदानशास्त्रज्ञ सर्वावयवसुन्दरम् । अल्पायु सन्तान उत्पन्न करती हो वह यदि इसे नानेन सदृशं किश्चिदौषधं चान्यदुसमम् ॥ सेवन करे तो दीर्घायु और रोग-रहित पुत्रको वर्तते मर्त्यलोकेऽत्र योषितां पुत्रदं परम् । | जन्म देने में समर्थ हो जाती है । नाम्ना फलघृतं ह्येतद्भारद्वाजेन निर्मितम् ॥ पुत्र प्राप्त कराने वाला स्त्रियों के लिये संसार अनुक्तं लक्ष्मणामूलं क्षिप्यन्त्यत्र चिकित्सकाः। | में इससे उत्तम एक भी औषध नहीं है । जीवद्वत्सैकवर्णाया घृतमस्मिन् प्रशस्यते ॥ आरण्यगोमयेनात्र वहिज्वालाविधिः स्मृतः॥ इस प्रयोगमें १ वर्णकी जीवद्वत्सा (जिसका बच्चा जीता हो ऐसी ) गायका घी लेना चाहिये कल्क द्रव्य-नागरमोथा, कुठ, हल्दी, और उसे जंगली उपलों की अग्निपर पकाना दारुहल्दी, पीपल, कुटकी, काकोली, क्षीरकाकोली, चाहिये। बायबिडंग, त्रिफला (हर्र, बहेड़ा, आमला ), बच, मेदा, रास्ना, इन्द्रायनकी जड़, देवदार, फूल (४५३०) फलघृतम् प्रियङ्ग, दोनों सारिवा, सौंफ, दन्तीमूल, मुलैठी, ( यो. चि. । घृता. ५.; बं. से. । स्त्री रो.; नीलोत्पल, अजमोद, महामेदा, सफेदचन्दन, लाल शा. घ. । म. ख. अ. ९) चन्दन, चमेलीके फूल, बंसलोचन, कायफल, सहचरे द्वे त्रिफलां गुडूचीं सपुनर्नवाम् । हींग और खांड ११-११ तोला लेकर सबको शुकनासां हरिद्रे द्वे रास्नां मेदां शतावरीम् ।। पानीके साथ पीस लें। कल्कीकृत्य घृतपस्थं पचेत्सीरे चतुर्गणे । ____ नोट-वृन्द माधव में दन्तीका अभाव है। तत्सिद्धं पाययेनारी योनिशूलनिपीडिताम् ।। शारजघरमें देवदारु और महामेदा का अभाव है। पीडिता चलिता या च निःस्ता विकृता २ सेर गोघृतमें उपरोक्त कल्क और ८ सेर च या। गायका दूध मिलाकर अरण्य उपलोंकी अग्नि पर पित्तयोनिश्च विभ्रान्ता षण्ढयोनिश्च या स्मृता॥ पकावें। जब घृतमात्र शेष रह जाय तो उसे प्रपद्यन्ते हि ताः स्थानं गर्भ गृहन्ति चासकद । छान लें। एतत्फलघृतं नाम योनिदोपहरं परम् ॥ इसे पुष्य नक्षत्रमें पकाना और स्वर्णादिके पीले और नीले फूलका पियानांसा, हरे, पात्रमें भरकर रखना चाहिये। । बहेड़ा, आमला, गिलोय, पुनर्नवा ( साठी ), अर. For Private And Personal Use Only
SR No.020116
Book TitleBharat Bhaishajya Ratnakar Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNagindas Chaganlal Shah, Gopinath Gupt, Nivaranchandra Bhattacharya
PublisherUnza Aayurvedik Pharmacy
Publication Year1928
Total Pages773
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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