SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 540
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir तेलमकरणम् ] तृतीयो भागः। [५४५] - लुकी छाल, हल्दी, दारुहल्दी, रास्ना, मैदा और इसे सेवन करनेस खियांका योनिशूल, योनि शतावर १०-१। तोला लेकर सबको पानीके साथ विभ्रंश, योनिका बाहर निकल आना, विवृता पीस लें । तत्पश्चात् २ सेर धीमें यह कल्क और योनि, पित्तदूषित योनि और षण्ड योनि आदि ८ सेर गोदुग्ध मिलाकर पकावें । जब घृतमात्र / समस्त योनिविकार नष्ट होकर स्त्री गर्भधारण करने शेष रह जाय तो उसे छान लें। .. योग्य हो जाती है। इति फकारादिघृतपकरणम् । अथ फकारादितैलप्रकरणम्। (४५३१) फणिज्जका तैलम् मोथा, सेठ, मिर्च, पीपल, हरे, बहेड़ा, (ग. नि. । तैला.) आमला, बच, सजी और हींग । प्रत्येक ओषधि फणिजकः सक्षवको नादेयं नवमालिका । | ११-१। तोला लेकर पानी के साथ पीसकर अश्मन्तको विडङ्गानि मयूरकफलानि च ॥ कल्क बनावें । फिर यह कल्क, २ सेर तैल और ८ सेर बकरीका दूध एकत्र मिलाकर मन्दाग्निपर वितुम देवदारु सहदेवा च कटलः । पकावें । जब तैलमात्र शेष रह जाय तो उसे बीज कारजपालाशं मूलकस्याजेकस्य च ।। छान लें। महापर्पटको मुस्तं त्रिकटु त्रिफला वचा । इसकी नस्य लेनेसे कण्ठमाला, विदारिका, सुवर्चला च हिमश्च समभागानि कारयेत् ।। गलग्रन्थि और गलगण्डका नाश होता है । अक्षमाः पचेदेभिस्तैलमस्य मुखामिना । । (४५३२) फलवत्तितेलम् अजातीरेण संयुक्तमजाक्षीरे चतुर्गुणे॥ (व. से. । अशे. ) सदस्प नस्य दद्याच गण्डमालाविनाशनम् । | तिक्ततुम्न्युद्भवं तैलं तैलबालसिसम्भवम् । विदारिका गलग्रन्थि गलगण्डं च नाशयेत् ॥ , आक्षोटकरसश्चैव रसं निर्गुण्डीगोमयैः।। छोटी तुलसी, सहजनेके बीज, जलबेत, नव- प्रत्येकैकन्तु सर्वेषां ग्राा पलचतुष्टयम् । मल्लिका ( वासन्ती-नेवारी ), पखानभेद, बायवि- कर्षकं सैन्धवं दयाहन्तीमूलं द्विमाषकम् ।। डंग, चिरचिटेके बीज, धनिया, देवदार, सहदेवी, द्विमाष सर्जिकाक्षारमेतत्तैलं विपाचयेत् । कायफल, करजबीज, ढाक (पलाश ) के बीज, तिक्ततुम्बीकृतावत्तियवेन्द्रस्वरसेन च॥ मूलीके बीज, तुलसीके बीज, पित्तपापड़ा, नागर- तैनाभ्यञ्जनेनैव दद्यादर्नामशान्तये ॥ For Private And Personal Use Only
SR No.020116
Book TitleBharat Bhaishajya Ratnakar Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNagindas Chaganlal Shah, Gopinath Gupt, Nivaranchandra Bhattacharya
PublisherUnza Aayurvedik Pharmacy
Publication Year1928
Total Pages773
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy