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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir घृतप्रकरणम् ] सृतीयो भागः। [५४३] या चैवास्थिरगर्मा स्यात्पुत्रं वा जनयेन्मृतम् । इस घृतको नित्य प्रति सेवन करनेसे मनुअल्पायुषं वा जनयेथा च कन्यां मसूयते ॥ । प्यमें स्त्री समागम करनेकी शक्ति बढ़ती है और योनिरोगे रजोदोषे परिस्राये च शस्यते। वह वीर, मेधावी तथा सुन्दर पुत्रोत्पादनमें समर्थ प्रजावर्धनमायुष्यं सर्वग्रहनिवारणम् ॥ होता है। नाम्ना फलघृतं ह्येतदश्विभ्यां परिकीर्तितम् । | जिस स्त्रीका गर्भ स्थिर न रहता हो, जो अनुक्तं लक्ष्मणामूलं क्षिपन्त्यत्र चिकित्सकाः ।। | मृत पुत्रोंको जन्म देती हो, या जिसके बच्चे जीवद्वत्सैकवर्णाया घृतं तत्र प्रयुज्यते। | थोड़ी उमरमें ही मर जाते या जिसके कन्या आरण्यगोमयेनेह वह्निज्वाला च दीयते ॥ । ही कन्या उत्पन्न होती है। उसके लिये यह घृत कल्क---मजीठ, मुलैठी, कूठ, हरे, बहेड़ा, । अत्यन्त हितकारी है । आमला, खांड, खरैटी (पाठान्तरके अनुसार बच ) मेदा, महामेदा, क्षीरकाकोली, काकोली, असगन्ध यह घृत योनिदोष, रजोदोष, गर्भस्राव और ग्रहदोषोंको नष्ट करता है । तथा इसके मूल, अजमोद, हल्दी, दारुहल्दी, फूलप्रियङ्गु सेवनसे आयु बढ़ती और सन्तान वृद्धि होती है। (पाठान्तरके अनुसार हींग ) कुटकी, नीलोत्पल, कुमुद, लाख ( पाठान्तरके अनुसार मुनक्का ) इस घृतमें चिकित्सक लक्ष्मणामूल भी डालते काकोली, क्षीरकाकोली, लालचन्दन और सफेद हैं । इसे गायके उपलोंकी अग्नि में पकाना चाहिये। चन्दन प्रत्येक ११-१। तोला लेकर पानीके (४५२९) फलघृतम् ( वृहत् ) साथ पीस लें। (वृ. यो. त. । त. १३९; वृ. मा. । योनिरोगा.; ___ जिसका बच्चा जीता हो ऐसी १ रंगकी शा. ध. । म खं. अ. ९) गायका घी २ सेर । तथा शतावरका रस और गायका दूध ८-८ सेर लेकर सबको एकत्र मिला- मुस्तं कुष्ठं हरिद्रे द्वे पिप्पली कदरोहिणी । कर पकावें । जब घृतमात्र शेष रह जाय तो काकोली क्षीरकाकोली विडङ्ग त्रिफला वचा॥ छान लें। मेदा रास्ना विशाला च देवदारु प्रियङ्गका । ४.-गदनिग्रहमें द्वे सारिवे शताहा च दन्ती मधुकमुत्पलम् ।। काकोली, क्षीरकाकोली दुबारा न लिख कर उनकी | अजमोदा महामेदा चन्दनं रक्तचन्दनम् । जगह जीवक ऋषभक लिखे हैं। तथा रेणुका, देवदारु जातीपुष्पं तुगाक्षीरी कट्फलं हिङ्गु शर्करा ।। और कटेली तथा कटेला अधिक लिखा है। एवं कुमुदकी अगह पाक लिखा है और सफेदचन्दन तथा शतावरीके रसका अभाव है। चतुर्गुणेन पयसा विपचेद्गोमयाग्निना ॥ वाग्भट में कल्कमें तगर और शतावर अधिक है। तथा खांद, नीलोत्पल, कुमुद, लाख, चन्दन और सफेद चन्दन एवं शतावरीके रस और दूधका अभाव है। 'सपिरेतन्नरः पीत्वा स्त्रीषु नित्यं वृषायते ॥ नाप For Private And Personal Use Only
SR No.020116
Book TitleBharat Bhaishajya Ratnakar Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNagindas Chaganlal Shah, Gopinath Gupt, Nivaranchandra Bhattacharya
PublisherUnza Aayurvedik Pharmacy
Publication Year1928
Total Pages773
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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