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चूर्णपकरणम् ]
तृतीयो भागः।
[५४१]
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(४५२२) फयादिकषायः
भरंगी, छोटी तुलसी, हरै, बहेड़ा, आमला, (ग. नि. । क्रिमिरो.) मूषाकर्णी, बायबिडंग, पीपल, चीता और सहजनेफजीफणिज्जकफलत्रितयाखुपर्णी- की छालका अथवा पीपल और बायबिडंगका काथ
कायः क्रिमिनमगधाशिखिशिग्रुयुक्तः। पीनेसे कृमि और तजन्य रोग नष्ट होते हैं। पीतः क्रिमीनपहरेत् क्रिमिजा रुजश्च जन्तोर्जयेदय कणाक्रिमिजित्कषायः ॥
इति फकारादिकपायप्रकरणम् ।
अथ फकारादिचूर्णप्रकरणम्।
१४५२३) फलत्रिकादिपूर्णम् (१) । (४५२४) फलत्रिकादिचूर्णम् (२) (इ.नि. र. । स्वरभेद.; दू. यो. (व. से.; वृ. नि. र. । मेदारो.) त. । त. ८१)
फलत्रयं त्रिकटुकं सतैलं लवणान्वितम् ।
षड्मासमुपभुक्तं चेत्कफमेदोनिलापहम् ॥ फलत्रिकत्र्यूषणयावशूक
हर्र, वहेड़ा, आमला, सोंठ, मिर्च, पीपल __ चूर्णानि हन्युः स्वरमामाशु ।
और सेंधा नमकके चूर्णको तेलके साथ ६ मास किंवा इलित्य बदनान्तरस्य
तक सेवन करनेसे कफ, मेद और वायु नष्ट हो स्वरामयं हन्त्यय पौष्करं वा॥ जाता है। हर्र, बहेड़ा, आमला, सोंठ, मिर्च, पीपल और (४५२५) फलिन्यादिवर्णम् जवाखारका चूर्ण ( शहदमें मिलाकर) चाटनेसे
(वृ. नि. र. । बालरो.)
| फलिन्यञ्जनमुस्तानां चूर्ण पीतं समाक्षिकम् । स्वरभंग शीघ्र ही नष्ट हो जाता है।
तृष्णां छर्दिमतीसारं बालानां तत्वतो हरेत् ।। ___ अथवा कुलथी या पोखरमूलको मुंहमें रख- फूलप्रिया, सुरमा और नागरमोथेका चूर्ण नेसे भी स्वरभंग (गला पड़ना रोग ) नष्ट हो शहदमें मिलाकर चटानेसे बालकांकी तृष्णा, छर्दि जाता है।
और अतिसारका नाश होता है। इति फकारादिचूर्णमकरणम्
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